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Monday May 13, 2024
Aryavart Times

प्रधानमंत्री ने किया मधुबनी पेंटिंग का जिक्र जाने क्या हाल है उन कलाकारों का

प्रधानमंत्री ने किया मधुबनी पेंटिंग का जिक्र जाने क्या हाल है उन कलाकारों का

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में मधुबनी पेंटिंग और मधुबनी मास्क का जिक्र किया । मधुबनी पेंटिंग आज देश दुनिया में लोकप्रिय है लेकिन ऐसे सुंदर चित्र बनाने वाले कलाकार अपनी मेहनत का उचित दाम नहीं मिलने के कारण आज भी परेशान हैं । 
प्रधानमंत्री ने इस बारे में कहा कि बिहार में कई women self help groups ने मधुबनी painting वाले mask बनाना शुरू किया है, और देखते-ही-देखते, ये खूब popular हो गये हैं | ये मधुबनी mask एक तरह से अपनी परम्परा का प्रचार तो करते ही हैं, लोगों को, स्वास्थ्य के साथ, रोजगारी भी दे रहे हैं ।
बहरहाल, चटकीले रंगों, जीवंत चित्रों और बारीकियों की वजह से खास पहचान रखने वाली ‘मिथिला पेंटिंग’ और उसके साथ कदमताल करती ‘गोदना पेंटिंग’ जातियों में बंटे समाज में समरसता लाने में अहम भूमिका निभा रही हैं लेकिन इनके कलाकार अपनी मेहनत का उचित दाम ना मिलने और बिचौलियों द्वारा अपना हक मारे जाने से व्यथित हैं।
जितवारपुर गांव ‘मिथिला पेंटिंग’ के लिए विश्वभर में मशहूर है, जहां का लगभग हर परिवार इस कला में निपुण है। इस गांव को हाल ही में ‘क्राफ्ट विलेज’ का दर्जा दिया गया है। ‘मिथिला पेंटिंग’ को पहचान दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाली, पद्मश्री से सम्मानित सीता देवी के पड़पोते की बहू आशा देवी इस विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। उनका कहना है कि पहले फ्रांस, जर्मनी, जापान से लोग आते थे और कलाकारों को अच्छी कीमत मिलती थी।
आशा देवी ने कहा, ''मिथिला पेंटिंग' को प्रसिद्धी मिलने के बाद बिचौलिए ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। वे इसे कम पैसों में यहां से खरीद कर मुंबई, दिल्ली और अन्य जगहों पर ले जाते हैं, जिससे कलाकारों को इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता।' उन्होंने कहा, 'हमारा सरकार से आग्रह है कि वह राष्ट्रीय स्तर का एक क्रय-विक्रय कार्यालय यहां खोले ताकि कलाकार अपनी कलाकृतियों को खुद बेच सकें।'
मिथिला पेंटिंग’ के साथ ही इस गांव में ‘गोदना पेंटिंग’ की विधा भी रही है। दिवंगत रौदी पासवान ने ‘मिथिला पेंटिंग’ के साथ-साथ इस विधा को भी आगे बढ़ाया। उन्होंने अपनी पत्नी चानो देवी के साथ मिलकर गोदना शैली को स्थापित किया, उसे विस्तार दिया और एक नया रूप प्रदान किया था। जितवारपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में इस पेंटिंग की विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी स्त्रियों के हाथों में रही है।







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