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Sunday April 28, 2024
Aryavart Times

नये विचारों के साथ रचनात्मकता का उपयोग करें नकारात्मकता से बचें : मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख

नये विचारों के साथ रचनात्मकता का उपयोग करें नकारात्मकता से बचें : मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख

कोरोना वायरस के कारण लम्बे लाकडाउन एवं गति​विधियां बंद होने के कारण लोगों के जीवन पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड रहा है। पेश है आर्यावर्त टाइम्स के साथ मेंटल हेल्थ एंड बिहैवियरल साइंसेज फोर्टिस नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के विभाग निदेशक डॉ. समीर पारिख से साक्षात्कार के प्रमुख अंश -

सवाल : लॉकडाउन के दौरान लम्बे समय तक घरों में बंद रहने का लोगों की दिमागी सेहत पर क्या असर हो सकता है ? क्या यह असर बंदी खुलने के बाद भी बना रहेगा  और इसका क्या प्रभाव पड़ेगा ? 

जवाब :  यह एक अभूतपूर्व स्थिति है, जिससे पूरी दुनिया गुजर रही है । मैं लोगों से कहना चाहूंगा कि हल्के तनाव, चिंता और हमारे परिजनों के लिए सुरक्षात्मक प्रवृत्ति बिल्कुल सामान्य बात है । ऐसी परिस्थिति में चिंता करना वास्तव में कोई समस्या नहीं है । हमें इसे सकारात्मकता और रचनात्मकता से जोड़ने के तरीके खोजने होंगे । 

सवाल : लॉकडाउन के कारण स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्र-छात्राएं पढ़ाई, परीक्षा और भविष्य को लेकर चिंतित हैं । कुछ करना खुद के नियंत्रण में नहीं होने से उनके सामने असहाय जैसी स्थिति है । ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए । 

उत्तर : स्कूल, कालेज में पढ़ने वाले छात्रों और प्रतियोगिता परीक्षा सहित अन्य परीक्षाओं की तैयारी करने वालों की समस्याएं लगभग एक सी ही है । छात्रों को यह समझना और स्वयं को समझाना होगा कि यह लॉकडाउन सभी छात्रों के लिये एक समान ही है । छात्रों ने पढ़ाई पूरी की है और यह देशव्यापी बंदी उन्हें स्वयं को तलाशने का एक अवसर भी दे रहा है। 

ऐसे में बच्चों को मस्तिष्क को ताजा रखने के साथ पुस्तके पढ़नी चाहिए, रचनात्मक लेखन करना चाहिए, पेंटिंग करनी चाहिए । अपने शौक पर अमल करें, मनोरंजन और मानसिक विकास पर ध्यान देकर अपनी रचनात्मकता बढ़ाएं । बच्चों के लिए जरूरी है कि उन्हें घर के अंदर खेले जा सकने वाले खेल में व्यस्त रखा जाए। इसके अलावा पढ़ाई और हॉबी से जुड़े विषयों के बीच सकारात्मक सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिए ।

सवाल : बंदी के कारण लोगों पर वित्तीय स्वतंत्रता खोने, नौकरी जाने का डर हावी हो जाता है । खास तौर पर असंगठित क्षेत्र में दिहाड़ी के आधार पर काम करने वालों पर यह गंभीर प्रभाव डालता है । ऐसे लोगों को क्या करना की चाहिए । 

उत्तर : कोरोना वायरस के कारण लोगों को सामाजिक दूरी बनाये रखनी है लेकिन भावनात्मक दूरी नहीं बनानी है । अलग अलग पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों के समक्ष पर समस्याएं आयेंगी लेकिन इसका हल भी समाज से ही निकलेगा । हम सभी को यह समझना होगा कि इस संक्रमण से बचने का और कोई रास्ता नहीं है । लॉकडाउन के चलते बिजनेस, नौकरी, कमाई, बचत और यहां तक कि मूलभूत संसाधन खोने के डर के कारण समस्याएं आती है। ऐसे में जो लोग सक्षम हैं, उन्हें ऐसे लोगों का ध्यान रखना चाहिए, जिनके पास कम है । एक दूसरे की मदद करें ।

हम सभी को एकजुट होकर इस विपदा से निपटना है और भावनात्मक रूप से एक दूसरे से जुड़कर रहना है । समस्या भी यहीं हैं और इसका समाधान भी यहीं पर है । 

सवाल :  वरिष्ठ नागरिक और कामकाजी पेशेवर भी सामान्य जीवन न जी पाने की वजह से मनोवैज्ञानिक तौर पर खालीपन महसूस करते है ।  ऐसे में वे मनोवैज्ञानिक विकारों से कैसे खुद को दूर रख सकते हैं । 

उत्तर : ऐसी महामारी की स्थिति में लोगों को अनिश्चितता महसूस होती रहती है। इस दौरान दु:ख, तनाव, भ्रम, डर का भाव अकेलापन काे बढ़ा देता है। ऐसे में जिनपर विश्वास करते हैं, उनसे बात करने से मदद मिल सकती है। दोस्तों और परिवार के संपर्क में रहें। स्वस्थ जीवन शैली को अपनाएं। अपनी दिनर्चया का एक समयसारणी बनाएंगे तो आपका मन शांत रहेगा और  मन में बेकार की बातों नहीं आएंगी।

सवाल : आने वाले समय में लोगों पर पड़ने वाले मनौवैज्ञानिक प्रभावों से निपटने के लिये आप लोगों और सरकार को क्या सुझाव देंगे ?

उत्तर :  सबसे पहले हमें कोरोना वायरस से बचने के लिये सामाजिक दूरी का सख्ती से पालन करना चाहिए, लाॅकडाउन के दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए । क्योंकि यह छोटी परेशानी हमें लम्बे समय की परेशानी से बचायेगी । 

इसके साथ ही खानपान पर ध्यान दें, पर्याप्त नींद और रोजाना कसरत बहुत जरूरी है। अगर भावनात्मक उथल-पुथल से जूझ रहे हैं तो किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता या काउंसलर से संपर्क करें। आप अपनी उन स्किल्स का इस्तमाल करें जिन्होंने आपको जीवन में पहले भी बुरी स्थिति का सामना करने में मदद की है।







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