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Wednesday May 08, 2024
Aryavart Times

प्रवासी मजदूरों के लिये देश में शहरी मनरेगा शुरू करना जरूरी है : निखिल डे

प्रवासी मजदूरों के लिये देश में शहरी मनरेगा शुरू करना जरूरी है : निखिल डे

लॉकडाउन और उसके बाद के महीनों में लाखों मजदूरों के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना आखिरी उम्मीद की किरण है, ऐसे में मनरेगा के कार्य दिवस में वृद्धि करने, बजट बढ़ाने के साथ  'शहरी मनरेगा' योजना जल्द से जल्द शुरू की जानी चाहिए । ऐसा कहना है किसान मजदूर शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डे का । 

निखिल डे ने 'आर्यावर्त टाइम्स' से साक्षत्कार में कहा, 'लॉकडाउन के दौरान जिस तादाद में मजदूरों की वापसी हो रही है, ऐसे में मौजूदा समय में सरकार रोजगार के लिए कोई नया ढांचा तैयार नहीं कर सकती है । इस स्थिति में सरकार के पास उनको रोजगार देने का मनरेगा ही एक विकल्प है ।'

उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले वर्षो में मनरेगा कमजोर हुआ है क्योंकि इसका बजट कम किया गया है। आपदा के समय में इसकी जरूरत और महत्व समझ में आ रही है, ऐसे में मनरेगा में कार्य दिवस को 100 दिन से बढ़ाकर 200 दिन करने की जरूरत है । लॉकडाउन और उसके बाद की स्थिति में मनरेगा योजना ग्रामीण क्षेत्र की जीवन रेखा बन सकती है।

डे ने कहा कि शहरों में कोरोना संक्रमण के चलते फिलहाल अधिकांश उद्योग-कारोबार बंद हैं, ये श्रमिक जो अभी तक अपनी जीविका के लिए सरकार पर निर्भर नहीं थे, अब उनकी ओर बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं । ऐसे में मनरेगा को गति देने श्रमिकों को पहले की तरह मजदूरी तो नहीं मिलेगी, लेकिन मनरेगा के तहत इतना पैसा मिल जाएगा कि जिंदगी का गुजर बसर हो सकता है । 

उन्होंने कहा, 'जिस तरह से शहरों से गांव को ओर मजदूरों का पलायन हो रहा है, ऐसी स्थिति को देखते हुए सरकार को 'शहरी मनरेगा' योजना तत्काल शुरू करनी चाहिए । इससे शहरों में संकट के समय में एक तरफ श्रमिक कम खर्च एवं न्यूनतम स्तर पर आय अर्जित कर सकेंगे, तो दूसरी तरफ साफ सफाई, राशन पहुंचाने, स्वास्थ्य सेवाओं आदि कार्यो से इनको जोड़ा जा सकेगा ।' 

निखिल डे ने कहा कि मनरेगा के तहत अभी 100 कार्य दिवस काम मिलता है और अगर कार्य दिवस को बढ़ाकर दोगुणा किया जाता है तब गांव से पालयन को रोकने में मदद मिलेगी।  गौरतलब है कि सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़, अप्रैल 2020 में ये दर 23.5 फ़ीसदी थी । कंज्यूमर पिरामिड्स हाउस होल्ड सर्वे के अनुसार, अप्रैल 2020 में 11.4 करोड़ रोज़गार कम हुए. कामकाजी लोगों की संख्या मार्च 2020 के 39.6 करोड़ पर आ चुकी थी, जो पिछले चार साल में सबसे कम थी ।

वहीं, सरकार का कहना है कि इस वर्ष मई के प्रथमार्द्ध तक मनरेगा के तहत 14.6 करोड़ कार्य दिवस रोजगार सृजित हुए हैं जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में करीब 40 प्रतिशत अधिक है ।   

बहरहाल, डे ने कहा कि कोविड-19 के मद्देनजर लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान पिछले दो महीने के दौरान इन मजदूरों की बचत खत्म हो गई है, ऐसे में भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए वह घरों को वापस लौटने को मजबूर है। लेकिन इन प्रवासी मजदूरों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया जा रहा है, वह दुखद है और देश की अर्थव्यवस्था रीढ़ की हड्डी को कमजोर करने वाला है । 

उन्होंने कहा कि हमें ग्राम पंचायतों और नगर पालिकों को सशक्त बनाना होगा, उन्हें साधन सम्पन्न बनाना होगा, तभी आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो सकता है । 

मनरेगा के सामने रोजगार सृजन की परीक्षा बेहद चुनौतीपूर्ण है, खासकर ऐसी स्थिति में जब रबी की कटाई अंतिम दौर में है और जून में खरीफ की बुआई का काम खत्म हो जाएगा । गांव लौट रहे प्रवासियों की संख्या भी काफी बड़ी है. पर यह संख्या कितनी बड़ी हो सकती है, इसका अंदाजा नहीं है । यह संकट और गहरायेगा जब अगले दो महीने में खेती से जुड़े काम खत्म हो जायेंगे । 







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