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Sunday April 28, 2024
Aryavart Times

महाराष्ट्र में सियासी चौसर की बिसात पर शह और मात का खेल

महाराष्ट्र में सियासी चौसर की बिसात पर शह और मात का खेल

पंकज ठाकुर

महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच प्रदेश की उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार को गिराने संबंधी बागी नेता एकनाथ शिंदे का कोई बयान नहीं आया है । शिंदे चाहते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह वह गठबंधन से बाहर निकलें और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल कर राज्य में सरकार बनायें ।
हालांकि, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री पद के शपथ लेने के बावजूद उनसे इस्तीफा दिलवा कर राज्य में महा विकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार बनवाने वाले तथा भारतीय राजनीति में 'पर्दे के पीछे के चाणक्य' माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने कहा है कि गठबंधन के घटक दल शिवसेना के साथ हैं और वह सरकार नहीं गिरने देंगे । पवार आज ही मुंबई से दिल्ली पहुंचे हैं ।
महाराष्ट्र में जारी सियासी घमासान और शिवसेना के अस्तित्व पर अब तक के सबसे बड़े संकट के बीच शरद पवार का बयान बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजनीति के जानकारों की माने तो शरद पवार ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं क्योंकि उनकी नजर भाजपा के दांव पर है। भारतीय जनता पार्टी के अगले कदम के बाद ही उनका कदम सामने आयेगा ।  
महाराष्ट्र की राजनीति में सियासी उथल-पुथल मची हुई है। यहां की राजनीति कौन सा करवट लेने जा रही है यह बहुत कुछ शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के अगले कदम पर निर्भर करता है। शिवसेना की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। उसके विधायकों का टूटना लगातार जारी है।
खबर है कि शिवसेना के छह और विधायक गुवाहाटी पहुंच चुके हैं। गुवाहाटी के रेडिसन ब्लू होटल में ही शिंदे बागी विधायकों के साथ रुके हुए हैं। शिंदे गुट आज कोई बड़ा फैसला कर सकता है।
विधायकों के बागी होने के बाद शिवसेना के पास विधायकों की संख्या काफी कम हो गई है। सूत्रों की मानें तो उद्धव ठाकरे के साथ केवल 16 विधायक हैं। यदि ऐसा है तो एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों को मिलाकर अघाड़ी गठबंधन के पास कुल 115 विधायक होते हैं जबकि बहुमत का आंकड़ा 145 है। वहीं शिंदे गुट के साथ भाजपा और अन्य विधायकों की संख्या को यदि जोड़ दिया जाता है तो यह संख्या 159 हो जाती है। स्पष्ट है कि उद्धव सरकार तकनीकी रूप से अल्पमत में आ गई है।
लेकिन इसके बावजूद शिवसेना के बागी मंत्रियों ने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है और अब भी तकनीकी रूप से उद्धव सरकार का हिस्सा हैं । शिंदे गुट के किसी भी मंत्री ने सरकार से अपना इस्तीफा राज्यपाल को नहीं भेजा है और न ही राज्य सरकार को गिराने संबंधी कोई बयान दिया है । एकनाथ शिंदे ने कभी यह भी नहीं कहा कि वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं ।
भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कभी भी ऐसे मौकों को जाने नहीं देते हैं और बहुत जल्दी सरकार बना लेते हैं । ऐसे में बहुमत का आंकड़ा होने के बावजूद राज्य में सरकार के गठन के लिये भाजपा का आगे नहीं आना अपने आप में यह दर्शाता है कि शिंदे गुट भले ही बगावत पर उतर आया हो लेकिन वह जल्दी में भाजपा के साथ नहीं जाना चाहती है ।  
इसका एक पहलू यह भी हो सकता है कि शिंदे अपने लिये मुख्यमंत्री का पद चाहते हों और भाजपा इसके लिये तैयार नहीं हो । इसलिये भी मामला अभी तक बाढ़ग्रस्त असम की राजधानी गुवाहाटी के एक होटल में ही अटका हुआ है । गुवाहाटी आज कल महाराष्ट्र की राजनीति का केंद्र बना हुआ है ।
इसका एक अन्य पहलू जो दिख रहा है कि भाजपा अभी खुद भी चाहती है कि यह संकट अभी कुछ दिन चले । कांग्रेस ने भी आरोप लगाया है कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी अहम मुद्दों से लोगों का ध्यान बांटने के लिये इस संकट को लंबा खींचने की कोशिश कर रही है ।
पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राव साहब दानवे ने दावा किया है कि महाराष्ट्र की सरकार अब दो से तीन दिन ही चलेगी । दूसरी ओर उनकी पार्टी के नेता कहते रहे हैं कि इस संकट से उनका कोई लेना देना नहीं है ।  
शिंदे और शिवसेना के अन्य विधायकों या मंत्रियों के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने रोष के कारण पार्टी से बगावत किया है और यह राज्यसभा चुनाव और विधान परिषद चुनाव में दिखा था ।
ठाकरे परिवार के इतने करीबी नेता माने जाने वाले एकनाथ शिंदे आखिर अचानक से बागी क्यों हो गये । राजनीति के जानकारों की अथवा बागी गुट के नेताओं की माने तो उद्धव अपने बेटे आदित्य का कद बड़ा करने के लिये शिंदे को दरकिनार करने लगे थे और जो मंत्रालय शिंदे के पास है उसमें आदित्य हस्तक्षेप करने लगे थे ।
जानकारों का यह भी मानना है कि सरकार बनते समय ज्यादातर अहम मंत्रालय एनसीपी के खाते में चले गये । कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं के पास जो मंत्रालय है उनमें शिवसेना नेताओ को फंड नहीं मिल रहा था ।
सूत्रों का दावा है कि एकनाथ शिंदे जिस मंत्रालय के मुखिया है, उसमें सीएम उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का दखल बढ़ गया था। एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र सरकार में नगर विकास मंत्री हैं।
महाराष्ट्र विधानसभा में नेता पद से हटाये जाने के खिलाफ शिंदे गुट ने आज उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन अब भी इस गुट के मंत्री अपने पद पर बने हुये हैं। उन्होंने न तो इस्तीफा दिया है और न ही ठाकरे सरकार को गिराने संबंधी कोई बात कही है ।
इससे पहले राकांपा नेता जयंत पाटिल भी यह बात कह चुके हैं । उन्होंने बेहद चुटीले अंदाज में कहा था कि शिवसेना के विधायक असम गये हैं और सरकार को इससे कोई खतरा नहीं है । यह भाजपा की साजिश है कि इसे ऐसा कहा जा रहा है क्योंकि न तो मंत्रियों ने अपना पद छोड़ा है और न ही वह शिवसेना से अलग हुये हैं । जिन्हें बागी कहा जा रहा है वह अब भी शिवसेना में हैं और मंत्री पद पर बने हुये हैं ।
इस नाटकीय घटनाक्रम जो सबसे बड़ा सवाल है वह है भाजपा की सार्वजनिक चुप्पी । सूत्रों की माने पार्टी पर्दे के पीछे से काफी कुछ कर रही है, लेकिन सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं बोल रही है । असम कांग्रेस के नेता ने प्रदेश भाजपा सरकार पर बागी विधायकों को विशेष सुविधाएं देने का आरोप लगाया है और साथ ही कहा है कि राज्य सरकार का ध्यान प्रदेश के बाढ़ से हट कर अपनी सारी शक्ति राजधानी के एक होटल पर केंद्रित कर दिया है जहां शिवसेना के बागी विधायक हैं । राज्य के मुख्यमंत्री ने हालांकि इससे इंकार किया है। 
उनका कहना है कि पर्यटन के लिये कोई भी आ सकता है। 
हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के एक और नेता ने कहा था कि शिवसेना विधायक यहां चले जायें क्योंकि राज्य सरकार बाढ़ प्रभावित लोगों की अनदेखी करते हुये उनकी खातिरदारी में लगी है।
महाराष्ट्र में गहराए राजनीतिक संकट के बारे में चुनावी पंडित विश्लेषण कर रहे हैं। उनका मानना है कि राज्य की राजनीति का भविष्य एकनाथ शिंदे के कदम पर निर्भर है। उनके पास इतने विधायक हो चुके हैं कि उन पर दल बदल कानून का नियम अब लागू नहीं होगा। शिंदे के पास कई विकल्प मौजूद हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि ताजा घटनाक्रमों को देखते हुए महाराष्ट्र में फिलहाल ये चार परिस्थितियां बन सकती हैं-
पहला, यह कि उद्धव ठाकरे सीएम पद से इस्तीफा दे दें और एकनाथ शिंदे को सीएम पद की शपथ दिलाई जाए ।
दूसरा, शिंदे अपनी अलग पार्टी बनाएं और भाजपा के समर्थन से सरकार चलाएं
तीसरा, अगली सरकार का विकल्प आने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए
और चौथा सरकार न बनने की सूरत में विधानसभा भंग कर दी जाए ।
राजनीति के चौसर पर अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है..इंतजार करें कि ऊंट किस करवट बैठता है । 

 







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