अभिषेक रंजन (शिक्षा शोधार्थी,विश्लेषक एवं अध्ययेता)
दिल्ली के स्कूल पहले बदतर नहीं थे, अभी वर्ल्ड क्लास भी नहीं हुए । यह तथ्य हाल ही में सीबीएसई के 10वीं एवं 12वीं कक्षा के परिणाम एवं स्कूलों की मौजूदा स्थिति के आंकड़ों से पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है।
आंकड़ों पर नजर डालें तक हर साल आधे गरीब के बच्चों को 9वीं में, एक तिहाई 11वीं में फ़ेल किए जाते है। जहां बेहतरीन शिक्षा मिलने के दावे के बावजूद कक्षा 3, 5,8 में बच्चों का भाषा और गणित में प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से 10 अंक कम है।
जहां 10वीं का रिज्लट 13 साल के भी रिकॉर्ड तोड़ खराब स्थिति में है। हालत ये है कि यूपी बिहार का रिज्लट 10वीं में दिल्ली से कही अधिक है, जबकि ये राज्य ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे अपने स्कूलों और कई तरह की आर्थिक, सामाजिक, भौगौलिक, Connectivity की समस्याओं से जूझते हुए भी स्कूल चला रहे है।
और दिल्ली देश की राजधानी होने के बावजूद यहां की सरकार बजट की राशि आधे खर्च ही नही कर पाती है।
यह ऐसे स्थान में शुमार होगा जहां 10वीं/12वीं में फ़ेल होने वाले 91% बच्चों को दुबारा ऐडमिशन नही मिलता होगा। जहां 9वीं से 12वीं तक में फ़ेल किए जाने वाले कुल बच्चों में दो तिहाई को स्कूलों से निकाल बाहर दिया जाता होगा। जहां 12वीं में मैथ पढ़ने वाले बच्चों की संख्या महज 15% होगी।
जहां 1% बच्चें ही कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करते होंगे। जहां दो तिहाई स्कूल नेतृत्वविहीन होंगे, वहां प्रिंसिपल के पोस्ट खाली होंगे।
यह ऐसा स्थान होगा जहां लगभग आधे शिक्षकों के पद खाली होंगे, जहां आबादी बढ़ने के बावजूद हर साल परीक्षा में बैठने वाले बच्चें बड़ी तेजी से घट रहे होंगे, जहां स्कूलों से आज भी लाखों बच्चें बाहर होंगे, जहां जनसंख्या बढ़ने के बावजूद स्कूलों(प्राइवेट+सरकारी) में नामांकन घट रहे होंगे तथा नए स्कूल के विकल्प "बिना शिक्षक के नए कमरे" और शिक्षा का विकल्प 2 स्कूलों में बनी स्विमिंग पुल होगी।
साल 2020 में सीबीएसई बोर्ड परीक्षा के परिणाम पर गौर करें तक दिल्ली में 10th Class में पिछले साल सभी बच्चों ने सामान्य गणित चुना था। रिजल्ट 71.58% रहा।
इस बार 2/3rd बच्चों को बेसिक गणित पढ़ने को मजबूर किया गया। रिजल्ट 82.61% रहा।
10% रिजल्ट बढ़ाने के लिए 73% बच्चों को Math नही पढ़ने देने और 9वीं में आधे बच्चों को फ़ेल करने की बात अखबार के विज्ञापनों में आज नज़र नही आई।
कोई खास वजह?
बताता चलूँ कि 10वीं में देश के लगभग सभी राज्यों में इससे अधिक अच्छे परिणाम आए है।
12वीं के रिजल्ट के बाद दिल्ली का शिक्षा मॉडल आज फिर से चर्चा में है. लेकिन 98% रिजल्ट के पीछे की सच्चाई दिलचस्प है.
इस साल जो बच्चें पास हुए, वे 2016-17 में 9वीं कक्षा में थे! तब इनके 47.7% सहपाठी 9वीं क्लास में फेल कर दिए गए थे! यानि लगभग आधे बच्चें ही 10वीं में गए. उनमें भी 2018 की परीक्षा में 32% फेल हो गए! कईयों ने 11वीं में एडमिशन भी नही लिया.
जब ये बच्चें 9वीं/10वी के बैरियर को पास करने के बाद 2018-19 में 11वीं में पहुंचे थे तो फिर से 20% बच्चें फेल किये गए. मकसद, रिजल्ट बेहतर आ जाए.
भारी संख्या में बच्चों को फेल करके रिजल्ट सुधारने का दिल्ली मॉडल सच में अद्भुत है!
एक नजर दिल्ली में शिक्षा की स्थिति और इससे जुड़े आंकड़ों पर डालें तब सच्चाई सामने आ जायेगी :-
17 जनवरी,2020 तक के भी आंकड़े को देखे तो कुल बच्चों की संख्या 14.72 है। 2014 तक 16.10 लाख बच्चें थे।
2014 तक 992 स्कूल थे। पिछ्ली सरकारों द्वारा स्वीकृत 38 स्कूल जुड़ने के बावजूद और 300 से भी ज्यादा स्कूलों में प्राइमरी+नर्सरी सेक्शन खोलने के बाद भी जब नामांकन 138000 घटकर 14.72 लाख पर पहुंच गया हो तो शिक्षा क्रांति की वास्तविकता समझी जा सकती है।
16 लाख बच्चें सरकारी स्कूलों में नही है।
दिल्ली सरकार की वेबसाइट की माने तो सभी स्कूलों में Attendence लगाने वाले Employee की संख्या केवल 46000 है।
सरकारी आँकड़े बताते है कि दिल्ली में शिक्षकों के 66128 पद स्वीकृत है, जिनमें 29430 पद खाली है.
स्कूलों में केवल 34211 रेगुलर टीचर ही पढ़ा रहे है, वही 20129 गेस्ट टीचर है। रेगुलर-गेस्ट मिलाकर भी 54340 का आंकड़ा छुते है। 65 हजार तो बिल्कुल नही होते! (Source- Outcome Budget (LG)- 2019)
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