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Saturday April 27, 2024
Aryavart Times

दिल्ली की सड़कों पर तमाशा दिखाकर जिंदगी गुजारने को मजबूर बंजारे

दिल्ली की सड़कों पर तमाशा दिखाकर जिंदगी गुजारने को मजबूर बंजारे

देश में आज भी कई जातियां ऐसी हैं जो दूसरों के सहारे जीने को मजबूर हैं। घूमंतू बंजारा जाति उनमें से एक है। तमाशा दिखाती है यह जाति। तमाशा दिखाने वाली इस जाति (भीलों) की जिंदगी आज खुद एक तमाशा बनकर रह गई है, जिसका ना कोई वर्तमान है और ना ही कोई भविष्य। यह हकीकत है महानगरीय दिल्ली में रहने वाले घुमंतू भीलों की। दो जून की रोटी और चंद सिक्कों की खातिर इन्हें कोड़ों से अपने आपको तब तक पीटना पड़ता है जब तक देखने वालों की आंखें गीली न हो जाएं। कहने के लिए सरकार के पास कल्याणकारी योजनाएं हैं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ घुमंतू जनजातियों को मिला नहीं। इनके लिए जो कुछ भी हुआ है वह कागज तक ही सीमित रहा है।

देश में आज भी कई जातियां ऐसी हैं जो दूसरों के सहारे जीने को मजबूर हैं। घूमंतू बंजारा जाति उनमें से एक है। तमाशा दिखाती है यह जाति। तमाशा दिखाने वाली इस जाति (भीलों) की जिंदगी आज खुद एक तमाशा बनकर रह गई है, जिसका ना कोई वर्तमान है और ना ही कोई भविष्य। यह हकीकत है महानगरीय दिल्ली में रहने वाले घुमंतू भीलों की। दो जून की रोटी और चंद सिक्कों की खातिर इन्हें कोड़ों से अपने आपको तब तक पीटना पड़ता है जब तक देखने वालों की आंखें गीली न हो जाएं। कहने के लिए सरकार के पास कल्याणकारी योजनाएं हैं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ घुमंतू जनजातियों को मिला नहीं। इनके लिए जो कुछ भी हुआ है वह कागज तक ही सीमित रहा है।

आख़िर कौन है विमुक्त जनजातियां इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि ब्रिटिश हुकूमत ने जिन कट्टर सशस्त्र विद्रोही समुदायों को क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871 के तहत जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था और भारत सरकार ने आज़ादी के 5 वर्ष बाद 31 अगस्त 1952 को ब्रिटिश हुकूमत के काले कानून क्रिमिनल ट्राईब्स एक्ट से मुक्त कर दिया था, अब वे विमुक्त जनजातियां कहलाती हैं ।

अंग्रेजों की प्रसारवादी नीतियों के विरुद्ध स्थानीय कृषक जातियों/जनजातियों ने अपने-अपने स्तर और क्षमता के अनुसार सशस्त्र विद्रोह किए थे. किन्तु इतिहास की पुस्तकों में उन्हें वह स्थान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था ।

जीवन भर घूमने के चलते बंजारा समुदाय सफर का पर्याय बन चुके हैं। बंजारों का न कोई ठौर-ठिकाना होता है, ना ही घर-द्वार। पूरी जिंदगी ये समुदाय यायावरी में निकाल देते हैं। किसी स्थान विशेष से भी इनका लगाव नहीं होता। एक स्थान पर यह ठहरते नहीं। सदियों से ये समाज देश के दूर-दराज इलाकों में निडर हो यात्राएं करता रहा है।

बंजारे कुछ खास चीजों के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं, जैसे नृत्य, संगीत, रंगोली, कशीदाकारी, गोदना और चित्रकारी। बंजारा समाज पशुओं से बेहद लगाव रखते हैं। अधिकतर बंजारों के कारवां में बैल होते हैं जिनमें वो अस्थायी घर बनाकर रखते हैं। इसमें रोजाना इस्तेमाल की जाने वाले सामान वे रखते हैं। दिनभर चलना और सूर्यास्त पर कहीं डेरा डालकर वहीं ये खाना बनाते हैं।

शहर में आम तौर पर सड़क किनारे टेंट में या फिर खुले में अस्थायी तौर पर कुछ लोग रहते दिख जाएंगे। कई बार ये लोग 2 से 3 दिन तो कई बार हफ्तों ऐसे ही समय गुजार देते हैं। सड़क किनारे दिख रहे इन घुमंतू लोगों के साथ बैलगाड़ी या फिर कोई और जानवर भी दिख ही जाएगा। ये बंजारे लोग ऐसे ही पूरा जीवन घूमते हुए गुजार देते हैं। महिलाएं तो इन जगहों पर पूरा दिन रहती हैं, जबकि पुरुष मेहनत-मजदूरी कर कुछ पैसे इकट्ठा कर फिर अगले पड़ाव की ओर बढ़ जाते हैं।







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