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Sunday April 28, 2024
Aryavart Times

पहाड़ी गड़रिया भलखू की शिमला रेलखंड बनाने में अहम भूमिका, पहले बैलगाडियों से पूरी होती थी यात्रा

 पहाड़ी गड़रिया भलखू की शिमला रेलखंड बनाने में अहम भूमिका, पहले बैलगाडियों से पूरी होती थी यात्रा

सुन्दर, मनमोहक पहाड़ियों एवं घाटियों, बर्फीले हिमखंडों से युक्त 102 सुरंगों और चार मंजिला स्टोन आर्च पुल वाले विश्व धरोहर कालका-शिमला रेलखंड देश दुनिया में प्रसिद्ध है लेकिन इसके निर्माण की कहानी भी उतनी ही रोचक है । इस रेलमार्ग का निर्माण भलें ही अंग्रेजों के शासनकाल में हुआ था लेकिन इसमें किसी ब्रिटिश इंजीनियर की बजाए एक अनपढ़ पहाड़ी गड़रिया भलखू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी । रेलखंड के निर्माण से पहले विक्टोरिया युग में शिमला की यात्रा अपने आप में इसलिए खास थी क्योंकि सामान सहित उंटों और बैलगाड़ियों के जरिये यात्रा पूरी होती थी।

ए जे डंकन ने अपनी पुस्तक ‘द सिम्पल एडवेंचर्स आफ ए मेम साहब’ :लंदन 1983: में बताया है कि किस प्रकार एक परिवार जिसमें एक मां, तीन बच्चे, एक नर्स आदि, अपने सामान के साथ कलकता से शिमला आने के लिए 11 उंट और 4 बैलगाड़ियों से यात्रा करने की योजना बनाते हैं।

पुस्तक के अनुसार उन दिनों रेलगाड़ी नहीं होने के कारण ऐसी यात्रा उंटों और बैलगाड़ियों की मदद से पूरी की जाती थी । पहले उंट पर कपड़ों के दो बड़े एवं दो छोटे ट्रंक, दूसरे उंट पर बच्चों के कपड़ों का संदूक एवं तीन बैग, तीसरे उंट पर किताबों के बक्से एवं फोल्डिंग कुर्सियां, चौथे उंट पर सामान के चार बक्से एवं बरसाती शीट, पांचवे उंट पर दराज वाले बाक्स, दो चारपायी एवं चार टेबल, छठे उंट पर दराजों वाला दूसरा बक्सा, स्क्रीन लैंप, लालटेन आदि, सातवें उंट पर चादर, बाल्टी, साजावटी सामान एवं बर्फ रखने की बाल्टी, आठवें उंट पर क्राकरी के तीन बक्से, टेनिस पोल आदि, नौवें उंट पर दूध रखने के बर्तन, बच्चों के टब, सिलाई मशीन घड़े, दसवें उंट पर रसोई के बर्तन एवं गलीचे तथा ग्यारहवें उंट पर नौकरों की चारपायी, टेबल ग्लास आदि का लदान होता था।

डंकन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि चार बैलगाड़ियों पर ऐसे सामान लादे जाते थे जो क्षतिग्रस्त नहीं हों । इनमें प्यानो आदि शामिल थे ।

1903 के अंत में रेल लाइन खुलने के बाद कालका शिमला रेलवे पर नियमित रूप से रेल सेवाएं प्रारंभ हुई ।

यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल कालका-शिमला रेलवे लाइन के निर्माण की कहानी बेहद रोचक है । करीब 113 वर्ष पुरानी इस रेलवे लाइन को ब्रिटिश इंजीनियरों के बजाय एक अनपढ़ पहाड़ी नौजवान बाबा भलखू के इंजीनियरिंग कौशल की मदद से तैयार किया गया। रेल विभाग के अनुसार अत्यंत दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में जब ब्रिटिश इंजीनियर रेलवे लाइन बिछाने में विफल हो गये तब एक स्थानीय गड़रिया भलखू ने अद्भुत कौशल की मदद से इस रेलवे लाइन के लिए रास्ता तैयार करने का सुगम मार्ग सुझाया । इन्हें बाद में इन्हें बाबा भलखू के नाम से जाना जाता है।

ब्रिटिश रेलवे कंपनी के मुख्य इंजीनियर एच एस हेरिंगटन के लाइन बिछाने की विफलता के बाद भलकू ने 96.57 किलोमीटर लंबे इस रेलवे ट्रैक का खाका तैयार करने में मदद की।

चायल से करीब आधे घंटे की दूरी पर भलकू का गांव है और वह घर भी है जिसमें वह रहते थे। सौ से ज्यादा साल पुराना यह घर लकड़ी का बना है और अभी तक यह वैसा ही खड़ा है जो उनके इंजीनियरिंग कौशल का एक अद्भुत नमूना है। भलखू के बारे में कहा जाता है कि उन्हें जीव-जंतुओं से बहुत प्रेम था।

कालका-शिमला रेलवे ट्रैक का निर्माण 1898 में शुरू हुआ। इसके निर्माण कार्य के लिए 86 लाख 78 हजार पांच सौ रुपए का बजट रखा गया था। निर्माण पूरा होते वक्त बजट दोगुना हो गया।

1910 में कालकता से प्रकाशित पुस्तक ‘द वेज आफ आवर लाइट रेलवे जोन’ में के एडवर्ड ने कहा कि इस लाइन पर यात्रा बढ़ाने और इसे लोकप्रिय बनाने के लिए काफी प्रयास किये गए हैं।

पुस्तक में तब की मार्गदर्शिका के बारे में लिखा गया है कि भारत में रेलवे द्वारा अभी तक जारी किये गए समस्त दस्तावेजों में यह मार्गदर्शिका सबसे अनूठी है।

गौरतलब है कि इस रेलमार्ग को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल की सूची में 2006 में शामिल किया गया है।







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