टीपू सुल्तान को लेकर देश में राजनीति बहस तेज हो जाती है । सोशल मीडिया पर अक्सर देखा जाता है कि कुछ लोग टीपू के समर्थन में तो कुछ विरोध में उतर आते है लेकिन यहां हम मैसूर के शासक की चर्चा दूसरी वजह से कर रहे हैं ।
दरअसल, कुछ साल पहले दावा किया गया था कि श्रीरंगपट्टनम के महल में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान का रक्त लगा हुआ दो सौ वर्ष से पुराना रेशम का कुर्ता अचानक सफाई कार्य के दौरान मिला। इस कुर्ते को टीपू सुल्तान ने चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध के दौरान अपने जीवन के अंतिम दिन पहना था।
टीपू सुल्तान संग्रहालय के एक अधिकारी के अनुसार, यह खोज अब तक प्राप्त टीपू सुल्तान के स्मृति अवशेषों में सबसे अद्भुत है। महल की सफाई के दौरान शोधकर्ताओं को महल के एक कक्ष में यह कुर्ता और अंग वस्त्र मिला।
यह भी दावा किया गया कि यह कुर्ता और अंग वस्त्र टीपू सुल्तान ने चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध के दौरान अपने जीवन के अंतिम दिन पहना था। इसी परिधान को पहनकर उन्होंने चार मई 1799 को अंतिम साँस लीं।
दो शताब्दी से अधिक समय पुराना होने की वजह से यह काफी खराब हालत में थे। इस परिधान का मूल रंग खराब हो गया है और यह हाथी के दाँत से मिलते-जुलते हलके पीले रंग का हो गया है। इस वस्त्र में खून लगा हुआ है। इसके संरक्षण के लिए इसे रसायनों से साफ किया गया था ।
टीपू सुल्तान का कुर्ता और अंग वस्त्र श्रीरंगपट्टनम के महल में वाटर गेट के पास मिला है। इस परिधान को सुल्तान ने अंग्रेजों से लोहा लेते समय पहना था।
टीपू सुल्तान के रक्त लगे इस परिधान की खोज करने वाले शोधकर्ता तिलकाड चिकरांगे गौड़ा ने कहा टीपू सुल्तान ने चतुर्थ मैसूर युद्ध के दौरान अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। उनका यह परिधान दो शताब्दी से अधिक समय से अँधेरे में धूल फाँक रहा था।
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और निजाम की फौज से हार के बाद टीपू सुल्तान की 4 मई 1799 को मौत हो गई थी।
अब यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या ऐसे धरोहरों का संरक्षण नहीं किया जाना चाहिए ? ऐसी ही वस्तुओं के बारे में लोगों को जानकारी दी जानी चाहिए । इन विषयों पर सार्थक चर्चा होनी चाहिए और शेष देश की जनता के विवेक पर छोड़ देना चाहिए ।
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