संस्कार भारती के नवनिर्मित मुख्यालय ‘कला संकुल’ का उदघाटन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय कलाएं मात्र मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि मनुष्य के अंदर के शिवत्व की अभिव्यक्ति हैं।
उन्होंने कहा कि पश्चिम ने कलाओं के माध्यम से महज रंजन को चुना, इसलिए उनकी कला अधूरी है और वे सुख की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। सुख के लिए वे भारत की तरफ देख रहे हैं क्योंकि भारत उस मूल तक जाता है जहां से सुख की भावना पैदा होती है।
भागवत ने कहा कि ऐसी समृद्ध कलाओं के माध्यम से समर्थ समाज का निर्माण करना हम सभी का लक्ष्य है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कलाकार एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष परेश रावल ने ऑनलाइन माध्यम से की। इस अवसर पर संस्कार भारती के संरक्षक बाबा योगेंद्र जी भी उपस्थित थे। पहले इस कार्यक्रम का भव्य आयोजन विज्ञान भवन में होना तय हुआ था और इसे लेकर सभी तैयारियां पूरी हो गईं थीं, परंतु कोविड महामारी की दूसरी लहर के बढ़ते प्रकोप के कारण इसे ‘कला संकुल’ में ही प्रतीकात्मक रूप में आयोजित किया गया।
भागवत ने कहा कि भारतीय कला से मनुष्य की चित्तवृत्ति को अपार शांति का अनुभव होता है। वैसे भारतीय मूल से जीवन की जो भी वृत्तियाँ उभरी हैं वे सभी सारी बातें इसी की पूर्ति करती हैं। सत्य में शिवत्व को देखना है तो उसमें करुणा का पुट आवश्यक है। कला उस संवेदना की अभिव्यक्ति है। कला के इस प्रवाह को सुरक्षित रखना हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ‘कला संकुल’ के माध्यम से सभी कलाओं के संवर्धन एवं संरक्षण हेतु ठोस प्रयास होंगे।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में सरसंघचालक श्री मोहन भागवत और संघ के नूतन सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने दीप प्रज्ज्वलन कर और नारियल फोड़कर ‘कला संकुल’ का उदघाटन किया।
Start the Discussion Now...