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Friday May 10, 2024
Aryavart Times

नकारात्मक जीडीपी दर चिंता का विषय : कृषि दर में वृद्धि उम्मीद बंधाने वाली

नकारात्मक जीडीपी दर चिंता का विषय : कृषि दर में वृद्धि उम्मीद बंधाने वाली

कोविड-19 के दौरान की अप्रैल से जून की तिमाही में भारत का जीडीपी दर -23 रहा । लेकिन तालेबंदी के बावजूद कृषि वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत थी । जीडीपी में इतनी बड़ी गिरावट व्यापक चिंता का विषय है लेकिन कृषि क्षेत्र में वृद्धि उम्मीद बंधाने वाली है कि दुकानें, उद्योग एवं प्रतिष्ठानों के खुलने, बाजार में निवेशकों का विश्वास बढ़ने एवं नकदी का प्रवाह बढ़ने के साथ आने वाले कुछ महीनों में सुधार देखने को मिलेगा ।  

इस साल अप्रैल से जून के दौरान पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया ताकि कोरोना वायरस को फैलने से रोका जा सके । इस दौरान खाने-पीने की चीज़ों और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को छोड़कर बाक़ी सभी आर्थिक गतिविधियाँ ठप रहीं । विनिर्माण क्षेत्र बंद रहा । अप्रैल, मई में भवनों, राजमर्गो से जुड़े कार्य ठप रहे । आटोमोबाइल क्षेत्र में उत्पादन रूका हुआ था, करखाने बंद थे और मजदूरों का अपने गांव की ओर पलायन जारी था । अवश्यक वस्तुओं को छोड़कर दुकानें बंद थी, होटल बंद थे और पर्यटन उद्योग पूरी तरह से ठप था । 

जब दुकानें, कारखाने बंद हों और काम करने के लिये श्रमिक नहीं हों तब जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पादन का मूल्यांकन किस आधार पर हो या उसका पैमान क्या हो । दुकानें, कारखाने बंद होने पर देश में पैदा होने वाले सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू का आकलन किस प्रकार से सामान्य दिनों के आधार पर की जा सकती है, वह भी काविड-19 क काल में । 

कोविड-19 के दौरान की अप्रैल से जून की तिमाही में भारत का जीडीपी दर -23 रहा । लेकिन तालेबंदी के बावजूद कृषि वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत थी । पिछले कुछ सालों से मानसून अच्छा रहा है और इस बार भी यह बेहतर है। आज विश्व बाजार में कच्चे तेल का दाम स्थिर या कम है। महंगाई की दर नियंत्रण में है और विदेशी मुद्र भंडार लबालब भरा हुआ है। कोविड-19 के दौरान ऐसी विदेशी कंपनियों की नजर भारत, वियतनाम की ओर तेजी से आई है जो चीन को छोड़कर कोई नया ठिकाना तलाश रहे हैं । ऐसे में तालेबंदी पूरी तरह से खुलने, निर्माण कार्यो के गति पकड़ने तथा निवेश की संभावनाओं के बीच जीडीपी फिर गति पकड़ेगी ।

वहीं, कृषि वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत  रहने से स्पष्ट होता है जो क्षेत्र खुला रहेगा और जहां काम होगा वहां उत्पादन होगा और आमदनी होगी । स्पष्ट है कि कोविड के दौरान खेतीबाड़ी-पशुपालन के चलते रहने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा । 

अर्थात एक बार दुकान खुलेगी, लोग बाजार में उतरेंगे तब आमदनी बढ़ेगी और इसका असर जीडीपी पर स्पष्ट तौर पर दिखाई देगा । 

इसकी तुलना हम 1979-80 के दौरान आई मंदी से कर सकते हैं । उस दौर में आर्थिक वृद्धि दर 3-3.5 प्रतिशत के बीच रहा करती थी । 1979-80 के दौरान  महंगाई दर 20 प्रतिशत हो गई थी, पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें बेतहाशा बढ़ गई थी, कृषि क्षेत्र में गिरावट दहाई के अंक में थी और निर्यात लुढ़क गया था । 

लेकिन अभी तालेबंदी के कारण उत्पन्न स्थिति के कारण जीडीपी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।  

ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)  का तात्पर्य किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू से होता है। 

जीडीपी आर्थिक गतिविधियों के स्तर को दिखाता है और इससे यह पता चलता है कि किन सेक्टरों की वजह से इसमें तेज़ी या गिरावट आई है । भारत में सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस (सीएसओ) साल में चार बार जीडीपी का आकलन करता है । जीडीपी से एक तय अवधि में देश के आर्थिक विकास और वृद्धि का पता चलता है ।

जीडीपी का आकलन के चार महत्वपूर्ण घटक होते हैं । इनमें पहला घटक 'कंजम्पशन एक्सपेंडिचर' है जो गुड्स और सर्विसेज को ख़रीदने के लिए लोगों के कुल ख़र्च को कहते हैं ।

दूसरा, 'गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर', तीसरा 'इनवेस्टमेंट एक्सपेंडिचर' है और आख़िर में नेट एक्सपोर्ट्स आता है । 

यह भी ध्यान देने की बात है कि जीडीपी के डेटा को कुछ महत्वपूर्ण सेक्टरों से इकट्ठा किया जाता है । इनमें कृषि, विर्निमाण, बिजली, गैस आपूर्ति , खनन, परिवहन एवं ढुलाई , वानिकी और मत्स्य, होटल, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और कम्युनिकेशन, फ़ाइनेंसिंग, रियल एस्टेट और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज़ और कम्युनिटी, सोशल और सार्वजनिक सेवाएँ शामिल हैं ।

यहां पर दो बिन्दुओं पर विचार करने की जरूरत है । पहला मांग कैसे बढ़े और दूसरा उद्योग, व्यापारियों और सरकार की ओर से निवेश में किस प्रकार से वृद्धि हो । क्योंकि अगर मांग नहीं होगी, बिक्री नहीं होगी तब उद्योग, कारखाने कैसे चलेंगे तथा श्रमिकों को पैसा कहां से मिलेगा । 

सावधानी यह बरती जाए कि घाटा कम करने के लिये नोट छापने को पुराने नुस्खे पर ही आश्रित नहीं रहा जाए । इसके साथ ही नौकरियों में छंटनी और वेतन में कटौती का तरीका नहीं अपनाया जाए अन्यथा यह मांग एवं क्रयशक्ति पर आघात पहुंचायेगा और इसका आगे नुकसान उठाना पड़ेगा । 

यह भी ध्यान देना होगा कि जब जीडीपी के आँकड़े कमज़ोर होते हैं, तो हर कोई अपने पैसे बचाने में लग जाता है. लोग कम पैसा ख़र्च करते हैं और कम निवेश करते हैं. इससे आर्थिक वृद्धि और सुस्त हो जाती है । ऐसे में सरकार से ज़्यादा पैसे ख़र्च करने की उम्मीद की जाती है । सरकार कारोबार और लोगों को अलग-अलग स्कीमों के ज़रिए ज़्यादा पैसे देती है ताकि वो इसके बदले में पैसे ख़र्च करें और इस तरह से आर्थिक ग्रोथ को बढ़ावा मिल सके ।







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