बंटवारा किसी भी देश, भूमि या सीमा का नहीं होता। विभाजन लोगों की जिंदगी, भावनाओं का हो जाता है जो हमेशा के लिए उनको इतने गहरे जख्म दे जाता है कि वह उनकी खुद की और आने वाली नस्लों की जिंदगी को झकझोड़ कर रख देता है। 1857 से 1947 तक 90 साल के संग्राम, आंदोलन और बलिदान के बाद भारतीयों ने आजादी की जगह विभाजन की त्रासदी देखी ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए विभाजन की पीड़ा को व्यक्त किया ।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हम आजादी का जश्न मनाते हैं, लेकिन बंटवारे का दर्द आज भी हिंदुस्तान के सीने को छलनी करता है। यह पिछली शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी में से एक है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कल ही देश ने भावुक निर्णय लिया है। अब से 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में याद किया जाएगा ।’’
इस बीच, जानकारों का कहना है कि भारत के एक बहुत बड़े भू भाग को धर्म के नाम पर अलग कर दिया गया जिसमें बड़े वर्ग की राय नहीं ली गई। यही सबसे बड़ी पहली त्रासदी थी। कुछ मुट्ठीभर लोगों ने टेबल पर बैठकर बंटवारा कर दिया।
अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 1.4 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे। महज 60 दिनों में एक स्थान पर सालों से रहने वाले को अपना घर बार, जमीन, दुकानें, जायदाद, संपत्ति, खेती किसानी छोडकर हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान आना पड़ा।
विभाजन के दौरान का कालावधि में बड़ी संख्या में लोग मारे गए, महिलाओं और छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा गया । पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इन दंगों में हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध, अहमदिया और शिया मुसलमानों की जिंदगी तबाह हो गई। हिंसा, भारी उपद्रव और अव्यवस्था के बीच पाकिस्तान से सिख और हिन्दू भारत की ओर भागे। बहुतों को ट्रेन मिली और बहुतों को बस मिली। कहते हैं कि पाकिस्तान की ओर से जो ट्रेन आई उसमें लाशें भरी हुई थी।
वर्तमान में धर्म के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान की 20 करोड़ की आबादी में अब मात्र 1.6 फीसदी हिन्दू ही बचे हैं जबकि आजादी के समय कभी 22 प्रतिशत होते थे।
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