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Saturday April 27, 2024
Aryavart Times

गोविंदाचार्य ने राजनीतिक दलों से किसानों के हितों को प्राथमिकता देने की अपील की

गोविंदाचार्य ने राजनीतिक दलों से किसानों के हितों को प्राथमिकता देने की अपील की

जाने माने चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने राजनीतिक दलों से अपने हितों की बजाए किसानों के हितों को प्राथमिकता देने की अपील की और उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह राज्य की हिंसा को केवल कानून और व्यवस्था का मुद्दा न समझे।

लखीमपुर की घटना पर क्षोभ प्रकट करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा कि सावधानी के तीन पहलुओं को बनाए रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी प्रतिक्रिया में मुद्दे की सीमा, गहराई और जटिलता को ध्यान में रखना चाहिए और इसे केवल कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में नहीं लेना चाहिए।

गोविंदाचार्य ने कहा कि कल लखीमपुर खीरी जिले में घटी हुई घटना से चिंतित एवं व्यथित हूँ । यह तो अभी जाँच का विषय हैं कि घटनास्थल पर मौजूद लोगों में से किसकी कितनी भूल थी किन्तु इस घटनाक्रम में से तीन सावधानियाँ बरतने की ज़रूरत हैं -

1) सभी राजनीतिक दल इसमें अपने हितों के बजाय किसानो के हितों का ध्यान रखे ।

2) किसान आंदोलन के सत्याग्रही आंदोलनकारी किसान, आजादी के समय पर चौरीचौरा काण्ड के घटना के बाद महात्मा गांधी जी ने जो किया उसे समझने  एवं अनुसरण करने की कोशिश करे ।

3) उत्तरप्रदेश की सरकार इसे मात्र law and order की समस्या ना माने बल्कि इस मुद्दे की व्यापकता, गहराई और जटिलता को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही करे ।

गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी जिले के तिकोनिया क्षेत्र में रविवार को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के केंद्रीय गृह राज्य मंत्री मिश्रा के पैतृक गांव जाने के विरोध के दौरान हुए संघर्ष में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मामले में पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज की हैं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा सहित कई अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

 गोविंदाचार्य ने तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर कहा कि अगर केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर खरीदने को दंडनीय अपराध बनाने वाला कानून पारित कर देती है तो वह केंद्र सरकार का किसानों पर महान उपकार होगा।

उन्होंने  कहा कि केंद्र सरकार ने कुछ महीने पूर्व जो तीन कृषि कानून बनाये, अब तक के अनुभवों के कारण उन कानूनों के बारे में किसानों में भारी आशंका है। किसानों को लग रहा है कि अब तक जो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारें कृषि उपज खरीद  रही थीं, वह धीरे धीरे बंद हो जाएगा। उन्हें लग रहा है कि किसानों को सरकारों ने फिर से निष्ठुर बाजार के हवाले करने का निर्णय कर लिया है।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार वैसे हर वर्ष विभिन्न कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है। आजकल धान, गेहूँ आदि 23 उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होता है। पर उन 23 में से केंद्र सरकार मुख्य रूप से धान और गेहूँ खरीदने की ही व्यवस्था बनायी है और वह भी केवल 4-5 राज्यों में। कहा कि कृषि अर्थशास्त्रियों के अनुसार सरकारें केवल 6 प्रतिशत किसानों से ही धान और गेहूँ खरीदती है। अर्थात न्यूनतम समर्थन मूल्य तो हर वर्ष घोषित होते हैं, पर केवल 6 प्रतिशत किसानों से ही धान और गेहूँ खरीदे जाते हैं। बाकी 94 प्रतिशत किसानों से धान और गेहूँ खरीदे जाने की व्यवस्था सरकारों ने नहीं की है।

गोविंदाचार्य ने कहा कि केंद्र सरकार हर वर्ष 23 कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भले घोषित करती हैं, पर अधिकांश किसानों को बाजार में वह न्यूनतम मूल्य भी नहीं मिलता है। 

उन्होंने आगे कहा कि अगर केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदने को दंडनीय अपराध बनाने वाला कानून पारित कर देती हैं तो वह केंद्र सरकार का किसानों पर महान उपकार होगा। तब सरकारी मंडी हो बाजार या किसान का खेत, पंजाब हो बिहार, धान हो या दालें, किसानों को अपनी कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने लग जायेगा। अर्थात ऐसा कानून देशभर के सभी किसानों के लिए लाभदायी होगा।

गोविंदाचार्य ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार अन्नदाता किसानों के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखाते हुए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारण्टी देने वाला कानून शीघ्र बनाएगी।







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