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Friday May 10, 2024
Aryavart Times

पंजशीर प्रांत पर अभी भी तालिबान नहीं कर सका कब्जा

पंजशीर प्रांत पर अभी भी तालिबान नहीं कर सका कब्जा

अफगानिस्तान का पंजशीर प्रांत एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसने तालिबान के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठा रखा है और अभी भी यह इलाका उसके कब्जे से बाहर है। राजधानी काबुल से मात्र तीन घंटे की दूरी पर स्थित पंजशीर का महत्व आज के समय में इसी बात से समझा जा सकता है कि 1980 से लेकर 2021 तक इसपर कभी भी तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। 

सोवियत संघ और अमेरिका की सेना ने भी इस इलाके में केवल हवाई हमले ही किए हैं, भौगोलिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने भी कभी कोई जमीनी कार्रवाई नहीं की। यह क्षेत्र नादर्न  अलायंस के मशहूर दिवंगत कमांडर अमहद शाह मसूद का गढ़ है । काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद पूर्व उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह यहीं मौजूद हैं और तालिबान विरोधी ताकतों को मसूद के बेटे अहमद मसूद के साथ मिलकर एकजुट करने में जुटे हैं ।

अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह ने कहा है कि वह किसी भी परिस्थिति में तालिबान के सामने सिर नहीं झुकायेंगे।

अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति ने ट्विट किया कि वे महान अहमद शाह मसूद की विरासत के साथ धोखा नहीं कर सकते। #Kabul

सालेह ने कहा कि हमें और अफगानियों को यह साबित करना होगा कि अफगानिस्तान, वियतनाम नहीं है ।

अमरूल्ला सालेह ने कहा कि अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक मैं वैध रूप से कार्यवाह राष्ट्रपति हूं । सालेह ने बताया कि वह अभी देश के भीतर हैं ।

उन्होंने कहा कि मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा।

बताया जा रहा है कि अफगान नेशनल आर्मी के जवानों के बीच यह खबर फैलाई गई कि मिलिट्री के शीर्ष कमांडरों ने तालिबान के साथ समझौता कर लिया है। संचार का अभाव और असलहों की कमी से सैनिकों को भी इस पर विश्वास होने लगा।

इसी कारण अफगान सेना के जवानों ने तो कई इलाकों में बिना एक भी गोली फायर किए तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया। लेकिन, पंजशीर एकमात्र ऐसा प्रांत है जो अब भी तालिबान के कब्जे से बाहर है।

उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह  का जन्म पंजशीर क्षेत्र में ही हुआ है और अभी अपने गढ़ यानी पंजशीर प्रांत चले गए। उनकी एक तस्वीर भी आई है जिसमें सालेह कई लोगों के साथ बैठकर बातें करते नजर आ रहे हैं।

माना जा रहा है कि तालिबान के खिलाफ विद्रोह का यहीं से झंडा बुलंद हो सकता है। नार्दन अलायंस शुरू से ही तालिबान के खिलाफ जंग करती आई है।







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