अक्सर अदालतों के फैसलों में हम 'संविधान का मूल ढांचा'... और इससे संबंधित चर्चा सुनते हैं । संविधान में संशोधन की संसद की असीमित शक्तियों पर एक तरह से लगाम कसने वाला यह सिद्धांत 1973 में दिया गया। उच्चतम न्यायालय ने जिस मामले में सुनवाई करते हुए यह सिद्धांत दिया, वह याचिका केरल के संत केशवानंद भारती ने दाखिल की थी।
भारती का जिक्र अक्सर 'संविधान का रक्षक' के रूप में कियाद जाता है । ऐसा इसलिए क्योंकि इसी याचिका पर फैसले में शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि उसे संविधान के किसी भी संशोधन की समीक्षा का अधिकार है। भारतीय न्याय इतिहास में इस फैसले को 'सबसे अहम' करार दिया जाता है। सरकारों के मनमाने रुख के खिलाफ अदालत गए केशवानंद भारती अब इस दुनिया में नहीं है। उन्होंने इडनीर मठ में रविवार तड़के देह त्याग दिया।
अब सवाल उठता है कि केशवानंद भारती क्यों गए थे उच्चतम न्यायालय ?
केरल के कासरगोड़ जिले में इडनीर मठ है। केशवानंद इसके उत्तराधिकारी थे। केरल सरकार ने दो भूमि सुधार कानून बनाए जिसके जरिए धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन पर नियंत्रण किया जाना था। उन दोनों कानूनों को संविधान की नौंवी सूची में रखा गया था ताकि न्यायपालिका उसकी समीक्षा न कर सके। समाज से आर्थिक गैर-बराबरी कम करने की कोशिशों के तहत राज्य सरकार ने कई कानून बनाकर जमींदारों और मठों के पास मौजूद हजारों एकड़ की जमीन अधिगृहीत कर ली. इस चपेट में एडनीर मठ की संपत्ति भी आ गई । मठ की सैकड़ों एकड़ की जमीन अब सरकार की हो चुकी थी । ऐसे में एडनीर मठ के युवा प्रमुख स्वामी केशवानंद भारती ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी । साल 1970 में केशवानंद ने इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।
यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो ऐतिहासिक हो गया। सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की बेंच बैठी, जो अबतक की सबसे बड़ी बेंच है। 68 दिन सुनवाई चली, यह भी अपने आप में एक रेकॉर्ड है। फैसला 703 पन्नों में सुनाया गया।
23 मार्च, 1973 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। संसद के पास संविधान को पूरी तरह से बदलने की असीमित शक्तियों पर अदालत ने ऐतिहासिक रोक लगाई। भारत के प्रधान न्यायाधीश एस एम सीकरी और जस्टिस एचआर खन्ना की अगुआई वाली 13 जजों की बेंच ने 7:6 से यह फैसला दिया था। उचतम न्यायालय ने कहा कि संसद के पास संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन का अधिकार तो है, लेकिन संविधान की मूल बातों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। अदालत ने कहा कि संविधान के हर हिस्से को बदला जा सकता है, लेकिन उसकी न्यायिक समीक्षा होगी ताकि यह तय हो सके कि संविधान का आधार और ढांचा बरकरार है।
भारती का केस तब के जाने-माने वकील नानी पालखीवाला ने लड़ा था। 13 जजों की बेंच ने 11 अलग-अलग फैसले दिए थे जिसमें से कुछ पर वह सहमत थे और कुछ पर असहमत। मगर 'मूल ढांचे' का सिद्धांत आगे चलकर कई अहम फैसलों की बुनियाद बना।
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