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Sunday May 12, 2024
Aryavart Times

महिलाओं के विवाह की आयु बढ़ाकर 21 वर्ष करने वाला विधेयक लोकसभा में पेश

महिलाओं के विवाह की आयु बढ़ाकर 21 वर्ष करने वाला विधेयक लोकसभा में पेश

लोकसभा में बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक 2021 पेश किया गया जिसमें लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के बराबर 21 साल करने का प्रस्ताव है। विधेयक पेश किये जाने के समय सदन में विपक्षी दलों के सदस्य गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त किये जाने की मांग सहित अन्य मुद्दों पर भारी शोर शराबा कर रहे थे । 
लोकसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने निचले सदन में बाल विवाह प्रतिषेध संशोधन विधेयक 2021 पेश किया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, द्रमुक, एआईएमआईएम, शिवसेना, आरएसपी, बीजद जैसे दलों ने विधेयक पेश किये जाने का विरोध किया और इसे व्यापक विचार विमर्श के लिये संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की ।
विधेयक पेश करने के बाद स्मृति ईरानी ने लोकसभा में आसन से इसे स्थायी समिति को भेजने का आग्रह किया ।
महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि लड़कियों एवं महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया और कहा कि जो लोग सदन में उनकी सीट के आगे शोर-शराबा कर रहे हैं, वे महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों के सदस्य अगर उनकी बात सुनते तो उन्हें पता चल जाता कि वह स्वयं ही सरकार की ओर से इस विधेयक को स्थायी समिति को भेजने का प्रस्ताव कर रही हैं ताकि इस पर विस्तृत चर्चा हो सके।
ईरानी ने साथ ही कहा कि सभी धर्म, जाति एवं समुदाय में महिलाओं को विवाह की दृष्टि से समानता का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि लड़कियों और लड़कों के विवाह की आयु एक समान 21 वर्ष होनी चाहिए।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले बुधवार को पुरुषों एवं महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु में एकरुपता लाने के प्रस्ताव संबंधी बाल विवाह (निषेध) विधेयक 2021 को स्वीकृति प्रदान की।
वर्तमान कानूनी प्रावधान के तहत लड़कों के विवाह के लिए न्यूनतम आयु 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल निर्धारित है।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि, ‘‘ हम प्रगति का दावा तब तक नहीं कर सकते हैं जब तक महिलाएं सभी मोर्चो पर प्रगति न कर लें जिसके अंतर्गत उनका शरीरिक, मानसिक और स्वास्थ्य भी शामिल है । ’’
इसमें कहा गया है कि संविधान मूल अधिकारों के एक भाग के रूप में लैंगिक समानता की गारंटी देता है और लिंग के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करने की गारंटी देता है। इसलिए वर्तमान विधियां पर्याप्त रूप से पुरूषों और महिलाओं के बीच विवाह योग्य आयु की लैंगिक समानता के संवैधानिक जनादेश को पर्याप्त रूप से सुनिश्चित नहीं करता है।
महिलाएं प्राय: उच्चतर शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, मनोवैज्ञानिक परिपक्वता प्राप्त करने के संबंध में अलाभप्रद स्थिति में रह जाती हैं और ऐसी स्थिति महिलाओं की पुरूषों पर निर्भरता को जन्म देती है।
विधेयक के अनुसार ऐसे में स्वास्थ्य कल्याण एवं महिलाओं के सशक्तिकरण एवं कल्याण की दृष्टि से उन्हें पुरूषों के समान अवसर सुनिश्चित करना आवश्यक है। 







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