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Saturday May 11, 2024
Aryavart Times

समग्र, एकात्म विचार करके जनसंख्या नीति बने, सभी पर समान रूप से लागू हो : मोहन भागवत

समग्र, एकात्म विचार करके जनसंख्या नीति बने, सभी पर समान रूप से लागू हो : मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि देश में समग्र व एकात्म विचार करके एक जनसंख्या नीति ‌बने,जो सभी पर समान रूप से लागू हो क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण के साथ साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा कि लोक प्रबोधन द्वारा इस के पूर्ण पालन की मानसिकता बनानी होगी, तभी जनसंख्या नियंत्रण के नियम परिणाम ला सकेंगे।
नागपुर में विजय दशमी उत्सव कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है, तब - तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है।  
भागवत ने कहा कि एक महत्वपूर्ण प्रश्न जनसांख्यिकी असंतुलन का भी है। 75 वर्ष पूर्व हमने अपने देश में इस का अनुभव किया ही है और इक्कीसवीं सदी में जिन तीन नये स्वतंत्र देशों का अस्तित्व विश्व में हुआ, ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सुडान और कोसोवा, वे इंडोनेशिया, सुडान और सर्बिया के एक भूभाग में जनसंख्या
का संतुलन बिगड़ने का ही परिणाम है। 
उन्होंने कहा किजन्मदर में असमानता के साथ साथ लोभ, लालच, जबरदस्ती से चलने वाला मतांतरण व देश में हुई घुसपैठ भी बड़े कारण हैं। इन सबका विचार करना पड़ेगा। 
सरसंघचालक ने कहा कि चीन ने अपनी जनसंख्या नियंत्रित करने की नीति बदलकर अब उसकी वृद्धि के लिए प्रोत्साहन देना प्रारंभ किया है। अपने देश का हित भी जनसंख्या के विचार को प्रभावित करता है।
उन्होंने कहा कि आज हम सबसे युवा देश हैं। आगे ५० वर्षों के पश्चात आज के तरुण प्रौढ़ बनेंगे, तब उनकी सम्हाल के लिए कितने तरुण आवश्यक होंगे यह गणित हमें भी करना होगा।
भागवत ने कहा कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आर्थिक तथा विकास नीति रोजगार- उन्मुख हो यह अपेक्षा स्वाभाविक ही कही जाएगी। परन्तु रोजगार यानि केवल नौकरी नहीं यह समझदारी समाज में भी बढ़ानी पड़ेगी। 
उन्होंने कहा कि कोई काम प्रतिष्ठा में छोटा या हल्का नहीं है, परिश्रम, पूंजी तथा बौद्धिक श्रम सभी क महत्व समान है, यह मान्यता व तदनुरूप आचरण हम सबका होना पड़ेगा।
सरसंघचालक ने कहा कि संघ को समाज में कुछ स्नेह तथा विश्वास का लाभ हुआ है और उसकी शक्ति भी है तो हिन्दू राष्ट्र की बात को लोग गम्भीरता पूर्वक सुनते हैं। 
उन्होंने कहा कि इसी आशय को मन में रखते हुए परन्तु हिन्दू शब्द का विरोध करते हुए अन्य शब्दों का उपयोग करने वाले लोग हैं। हमारा उनसे कोई विरोध नहीं। 
भागवत ने कहा,‘‘ आशय की स्पष्टता के लिए हम हमारे लिए हिन्दू शब्द का आग्रह रखते रहेंगे।’’
उन्होंने कहा कि तथाकथित अल्पसंख्यकों में बिना कारण एक भय का हौवा खड़ा किया जाता है कि हम से अथवा संगठित हिन्दू से खतरा है। ऐसा न कभी हुआ है, न होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘ न यह हिन्दू का, न ही संघ का स्वभाव या इतिहास रहा। ’’
संघ प्रमुख ने कहा कि अन्याय, अत्याचार, द्वेष का सहारा लेकर गुंडागर्दी करने वाले समाज की शत्रुता करते हैं तो आत्मरक्षा अथवा आप्तरक्षा तो सभी का कर्तव्य बन जाता है।
उन्होंने कहा, “ना भय देत काहू को, ना भय जानत आप”, ऐसा हिन्दू समाज खड़ा हो यह समय की आवश्यकता है। यह किसी के विरुद्ध नहीं है। संघ पूरी दृढ़ता के साथ आपसी भाईचारा, भद्रता व शांति के पक्ष में खड़ा है।’’







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