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Friday May 10, 2024
Aryavart Times

मातृभाषा एवं स्थानीय बोलियों के संरक्षण के कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही है सरकार

मातृभाषा एवं स्थानीय बोलियों के संरक्षण के कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही है सरकार

सरकार ने देश में मातृभाषा, स्थानीय बोलियों सहित विभिन्न भाषाओं के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही है जिसमे खास तौर पर नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सुझावों को ध्यान में रखा जायेगा । 
शिक्षा मंत्रालय ने खास तौर पर विलुप्तप्राय भाषाओं/बोलियों के संरक्षण के लिये केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ‘विलुप्तप्राय भाषाओं संबंधी केंद्र’ स्थापित करने की शुरूआत की है। 
संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने आर्यावर्त टाइम्स से बातचीत में कहा, ‘‘ भाषा या बोलियों के बिना संस्कृति जिंदा नहीं रह सकती है। ऐसे में मातृभाषाओं एवं स्थानीय बोलियों का संरक्षण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।भाषाओं एवं बोलियों के संरक्षण के मुद्दे पर शिक्षा, संस्कृति मंत्रालय सहित तीन-चार मंत्रालय/विभाग काम कर रहे हैं ।’’
उन्होंने बताया कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशों के अनुरूप पठन पाठन में मातृभाषा या स्थानीय भाषाओं के उपयोग और इससे संबंधित कार्यक्रम को लेकर विचार विमर्श चल रहा है। 
वहीं, शिक्षा  मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि हाल ही में पद्मश्री चामू कृष्ण शास्त्री की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार सम्पन्न समिति का गठन किया है । इस समिति को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2000 की सिफारिशों के अनुरूप स्कूली एवं उच्च शिक्षा के स्तर पर भारतीय भाषाओं के अध्ययन को बेहतर बनाने एवं उसके बहुआयामी विकास का रास्ता सुझाने का दायित्व सौंपा गया है। 

गौरतलब है कि भारतीय भाषाओं के विकास के संबंध में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2000 में कहा गया है कि भाषा हमारी कला एवं संस्कृति से अटूट रूप से जुड़ी है तथा किसी भाषा को बोलने वाला अपने अनुभवों को कैसे समझता है या किस प्रकार से ग्रहण करता है...यह उस भाषा की संरचना से तय होता है।
नीति दस्तावेज के अनुसार, दुर्भाग्य से देश में भारतीय भाषाओं का समुचित देखभाल नहीं होने से देश ने विगत 50 वर्षो में ही 220 भाषाओं को खो दिया। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लुप्तप्राय घोषित किया है। ऐसे में शिक्षण एवं अधिगम के स्तर पर स्कूली एवं उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं को एकीकृत करने की जरूरत है। इसमें कहा गया है कि जहां तक संभव हो, कम से कम 5वीं कक्षा तक और संभव हो तो 8वीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा/गृहभाषा में हो ।  उच्च शिक्षा के कार्यक्रमों में भी शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा का उपयोग किया जाए  ।
अधिकारी ने बताया कि विलुप्तप्राय भाषाओं/बोलियों के संरक्षण के लिये केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ‘विलुप्तप्राय भाषाओं संबंधी केंद्र’ स्थापित करने के योजना की शुरूआत की गई है। 
उन्होंने बताया कि इसके अलावा, मैसूर स्थिति भारतीय भाषा संस्थान 10 हजार से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भारतीय बोलियों/भाषाओं के सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रलेखन का कार्यक्रम चला रही है जिसमें 117 भाषाओं/ बोलियों को शामिल किया गया है।







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