34.5c India
Friday May 10, 2024
Aryavart Times

ब्रिटिश राज से कश्मीर को बचाने की जब चुकाई गई थी 75 लाख रुपये कीमत

ब्रिटिश राज से कश्मीर को बचाने की जब चुकाई गई थी 75 लाख रुपये कीमत

 (निर्मल यादव)

धरती पर जन्नत कहे जाने वाले जम्मू कश्मीर की खूबसूरती, शासकों से लेकर कवियों और दार्शनिकों तक को सदियों से रिझाती रही है। यही वजह है कि यह हिम प्रदेश आदि काल में देवाधिदेव शिव की साधना से लेकर आधुनिक काल में जय शंकर प्रसाद के लिये भी कामायनी की रचना की कर्मस्थली बना। सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नयन के इस सफर ने कश्मीर और काशी के अंतर्संबंधों की मजबूत पृष्ठभूमि तैयार की।  

तारीखी पन्नों को पलटें तो जम्मू कश्मीर रियासत पर दावे का रोचक अतीत भी उभर कर सामने आता है। इसका एक मौजूं उदाहरण अमृतसर की संधि है जो 175 साल पहले जम्मू कश्मीर की शासकीय बागडोर 75 लाख रुपये में अंग्रेजों से खरीदे जाने की गवाह है। 

कश्मीर में इतिहास में 16 मार्च 1846 की तारीख़ का ख़ास महत्व है। इस दिन वजूद में आयी अमृतसर की संधि के तहत सिख शासक गुलाब सिंह ने ब्रिटिश सरकार से 75 लाख नानकशाही रुपये (सिख शासन की तत्कालीन मुद्रा) में जम्मू कश्मीर रियासत को खरीदा था। इस संधि को ही जम्मू कश्मीर में डोगरा शासन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। 

इतिहासकारों की राय में कश्मीर रियासत की इस खरीद फरोख्त के पीछे एक कूटनीतिक पहल थी जिसका मकसद जम्मू कश्मीर को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन लाने से बचाना था। हिमाचल प्रदेश में स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति और इतिहासकार कुलदीप चंद अग्निहोत्री इस संधि को खरीद फरोख्त मानने से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि उस समय समूचा सप्तसिंधु क्षेत्र अर्थात पश्चिमोत्तर भारत महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था। ब्रिटिश सिख युद्ध में रणजीत सिंह की हार के बाद कश्मीर सहित पूरा उत्तर पश्चिम भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन आ गया था। इस युद्ध में पराजित हुये महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी राजा गुलाब सिंह ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से 1845 में हुये लाहौर समझौते के तहत अमृतसर की संधि की। इस संधि के परिणामस्वरूप ही उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को 75 लाख नानकशाही रुपये चुका कर जम्मू कश्मीर के शासन को ब्रिटिश हुकूमत से अलग करवा लिया था। बकौल प्रो. अग्निहोत्री, इसके पीछे कूटनीतिक मकसद यही था कि प्राकृतिक सौंदर्य और संसाधनों की दृष्टि से देश के श्रेष्ठतम इलाके को किसी विदेशी शक्ति की प्रत्यक्ष अधीनता से दूर रखा जा सके। 

इस संधि से इतर कश्मीर की चर्चा काशी और कामायनी के साथ इस सूबे के अंतर्संबंधों की विवेचना के बिना अधूरी ही है। काशी, कश्मीर और कामायनी’’ महज तीन शब्दों की तुकबंदी नहीं है, बल्कि ये शब्द आदि पुरुष शिव के व्यापकतम आयाम को समन्वयवादी दर्शन पर आधारित विचार से जोड़ने वाली एक सरल रेखा है। आदि और अनंत के बीच सेतु का काम करने वाले ये शब्द, अतीत से कालातंर तक अपने अंतर्सबंध की व्याख्या के लिये अब तक बाट जोहते रहे। इसे कालचक्र कहें या विडंबना, काशी और कश्मीर की अब तक पृथक मीमांसा तो भरपूर हुयी लेकिन इन पवित्र स्थलों के आध्यात्मिक एवं दार्शनिक अंतर्सबंध को परखने का अभीष्ट शायद शेष ही है।







Start the Discussion Now...



LIVE अपडेट: देश-दुनिया की ब्रेकिंग न्यूज़