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Monday April 29, 2024
Aryavart Times

आज भी आदर्श है सदियों पुराने बुंदेलखंड के तालाब

आज भी आदर्श है सदियों पुराने बुंदेलखंड के तालाब

सूखे और पेयजल संकट से ग्रस्त बुंदेलखंड में 9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच बेमिसाल डिजाइन और कभी सालों जल से लबालब रहने वाले तालाब आज भी न केवल इस क्षेत्र बल्कि पूरे भारत के लिये जल आपूर्ति एचं संचयन का आदर्श मॉडल हो सकते हैं ।

9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच चंदेल राजाओं ने इस क्षेत्र में तालाबों की बेमिसाल डिजाइन के जरिये सालों जल से लबालब रहने वाले तालाबों एवं कुओं की श्रृंखला तैयार की थी। इन तालाबों की खस्ता हालत है । ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बुंदेीलखंड के तालाबों को बहाल करने के साथ इसी मॉडल पर देश के अन्य हिस्सों में जलाशयों का नेटवर्क तैयार किया जाए । 

तालाबों की इंजीनियरिंग और डिजाइन पर नजर डालें तो बुंदेलखंड के मउरानीपुर, महोबा, चरखारी आदि क्षेत्रों में तालाबों की लंबी श्रृंखला है जो एक शहर तक सीमित नहीं बल्कि 100 किलोमीटर के दायरे में पानी की ढाल पर बने कस्बों में फैली है । यानी जब एक तालाब में पानी भर जाएं तो पानी अगले तालाबों को भरे और इलाके के सारे तालाब भरने के बाद ही बारिश का बचा हुआ पानी किसी नदी में गिरे।

9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच बुंदेलखंड के चंदेल कालीन तालाबों की डिजाइन और इंजीनियरिंग का जिक्र करते हुए आईआईटी के अध्येता रहे एवं वरिष्ठ अभियांत्रिकी विशेषग्य के के जैन ने कहा कि इस इलाके में एक भी प्राकृतिक झाील नहीं है। चंदेलों ने 1,300 साल पहले बड़े-बड़े तालाब बनवाए और उन्हें आपस में

खूबसूरत अंडरग्राउंड वाटर चैनल के जरिए जोड़ा गया था। उस बेहद कम आबादी वाले जमाने में यह काम सिर्फ पीने के पानी के इंतजाम के लिए नहीं किया गया था। वे तो अपने शहरों को 48 डिग्री सेल्सियस तापमान से बचाने के भी पुख्ता इंतजाम किया करते थे।

मउरानीपुर से 50 किलोमीटर पूर्व में आल्हा-उदल के शहर महोबा में आज भी चंदेल कालीन विशाल तालाब दिख जाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख मदन सागर तालाब चारों तरफ से पहाडि़यों से घिरा है।

महोबा नगर एवं आसपास के इलाके को पेयजल की आपूर्ति मदन सागर से होती है। इसका निर्माण चंदेल राजा मदन बर्मन ने 1129 ई. में कराया था। इस जलाशय को अब उर्मिल बांध से जोड़ दिया गया। जर्जर तालाब के बड़े हिस्से पर अतिक्रमण है। वर्ष 2007-08 में सूखा राहत निधि से 80 लाख रुपये से जलाशय की सफाई करायी गयी थी, लेकिन तालाब का चौथाई हिस्सा भी साफ नही हो सका। यहां कीरत सागर का निर्माण चंदेल राजा कीर्ति बर्मन ने वर्ष 1060 ई. में कराया था। आल्हा-ऊदल और पृथ्वीराज चौहान के मध्य इसी तालाब की कछार में युद्ध हुआ था, इस वक्त से यहीं ऐतिहासिक कजली मेला लगता है। 

1782 में महाराजा विक्रमाजीत ने विजय सागर व कोठी तालाब ता निर्माण कराया था। सफाई एवं मरम्मत के अभाव में इन सरोवरों का स्वरूप नष्ट होने लगा तो बीते वर्ष विरासत बचाने के लिए लोग फावड़ा-डलिया कुदाल लेकर निकल पड़े सरोवर की सफाई करने। डीआरडीए के अभियंता ने 25 लाख रुपए मूल्य के श्रमदान का आंकलन किया। वर्ष 1829 में राजा रतन सिंह ने मंगलगढ़ दुर्ग के पिछले भाग के नीचे रतन सागर बनवाया। इसका क्षेत्रफल 60 एकड़ था। वर्तमान में तालाब की 75 फीसदी भूमि पर कृषि पंट्टे हैं और इन दिनों तालाब पूरी तरह सूख चुका है। वर्ष 1882 में राजा मलखान सिंह ने 80 एकड़ में मलखान सागर का निर्माण कराया। सागर के किनारे बने सुंदर पक्के घाट अब लगभग ध्वस्त हो चुके हैं। तालाब की भूमि पर ईंट-भट्ठे तक स्थापित हैं।

जय सागर का निर्माण राजा जय सिंह ने 1860 ई. में कराया था। इस तालाब की भी हालत ठीक नहीं है। गुमान बिहारी मंदिर के सामने गुमान सागर का निर्माण 1890 में राजा जुझार सिंह ने कराया था। कोट स्थित गंडेला तालाब का निर्माण वर्ष 1860 में हुआ। 







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