34.5c India
Saturday May 11, 2024
Aryavart Times

प्रवासी मजदूर : देश की कमजोरी या देश की ताकत?

प्रवासी मजदूर : देश की कमजोरी या देश की ताकत?

-के एन गोविंदाचार्य-

'जंजीर की मजबूती उसकी मजबूत कड़ियों से नहीं बल्कि उसकी सबसे कमजोर कड़ी से ही आंकी जायेगी|'

यह बात किसी देश की विकास यात्रा के बारे में लागू होती है| अपने देश की सबसे ज्यादा असुरक्षित और कमजोर कड़ी है “असंगठित क्षेत्र में जिंदगी” को किसी तरह अपने आतंरिक, व्यक्तिगत और सामाजिक ताकत से चला रहे मजदूर, कारीगर, छोटे सीमांत किसान और छिट-फूट अनियमित व्यापार से जिंदगी चला रहे स्व-रोजगारिये लोग|” इनकी संख्या अनुमानतः 45 करोड़ तो पड़ती ही है| वे सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध और आर्थिक दृष्टि से विपन्न है | यही हमारे देश की वह कमजोर कड़ी है| इसे मजबूत किये बगैर केवल जीडीपी ग्रोथ रेट के आंकड़ों से भारत आर्थिक माहाशक्ति नहीं हो सकता| इस क्रम मे यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि विकास के बारे मे कई बार आंकड़ों का खेल भुलावा और छलावा का राजनैतिक खेल बन जाता है| पढ़े लिखे जानकार लोगों के बुद्धिविलास की विषयवस्तु बन जाती है|

इस कमजोर कड़ी की स्थितियों को जानना, समझना जरूरी है| तभी जमीनी जरूरते समझ मे आयेंगी|

'इनकी #जीवनशैली में मोबाइल, बैंक अकाउंट का उपयोग कुछ अलग तरह से होता है| गाँव-घर से संपर्क का मुख्य माध्यम बन जाता है, साथ ही मन तकलीफों से भटकाने या मन लगाने के उपकरण के नाते मनोरंजन की विधा मे काम आता है|” समाचार पत्रों, वेबपोर्टल को डाउनलोड करने के काम नही आता|

असंगठित लोगों के पास गाँव-घर, पैसे भेजने के भी अपने अनौपचारिक इंतजाम होते है|

सोशल डिस्टेंसिंग, घरों मे रहने का आग्रह आदि शब्द इस धरातल पर अनबूझ रह जाते है| उनको अपने घर का बजट, कमाई मे खर्च की बजाय बचत का गणित तो बैंकों और सरकारी पैसे पर निर्भर कॉर्पोरेटिये से बेहतर समझ मे आता है| वेआत्मनिर्भर स्वभाव #संस्कार से हैं, नीति निर्देश से नहीं'

'उन्हें, सहयोग, संबल की जरुरत है| इस आबादी को केंद्र बिन्दु बनाकर सोचेंगे तो विकास की वर्णमाला का 'क', 'ख', 'ग' होगा कि इस वर्ग के हर बच्चे को रोज आधा किलो दूध, आधा किलो फल और आधा किलो सब्जी इसे आधार बनाकर विकास की योजना, बजट, धन-साधन आवंटन, देसी तरीके से हो न कि घुमा-फिराकर #द्राबिड़ी प्राणायाम से| अभी कोरोना संकट में सबके बड़ी जरुरत है कि इस तबके के हाथ पैसा सीधे पहुंचे' कोरोना के बाद की स्थितियों में भारत के आर्थिक विकास के अनोखे क्रम में कृषि, गोपालन वाणिज्य को महत्त्व देना होगा और उसमें #गोवंश को प्रतिष्ठा का स्थान देना होगा|उसकी चर्चा फिर कभी |

उनकी यात्रा संकल्प ने वर्तमान राजसत्ता व्यवस्था को अपने लिये अस्वीकृत कर लिया और अपने को भगवान् के हवाले कर निकल पड़े| *लॉकडाउन के पहले ही तीन, चार दिन लगाकर व्यवस्थित वापसी का इन्तजाम किया जा सकता था| दूसरे लॉकडाउन में इज्जतपूर्वक वापसी की व्यवस्था की जा सकती थी|*

असंगठित क्षेत्र में ही देश मे 45 करोड़ खाते है| उनमे से 5 करोड़ वापस आने थे| उसमे से प्रदेश के अन्दर तो लोग जैसे-तैसे वापस आ सके| फिर भी करोड़ों लोग फंस गये|

प्रदेश के बाहर से लौटने वालो के प्रति कड़ाई बढती गई| *बहुत देर हुई यह समझने में कि ऐसे संकट में घर वापस जाने की इच्छा उचित एवं स्वाभाविक है, रोकने की बजाय व्यवस्थाएं की जानी चाहिये थी जो नहीं हो सकी| फलतः आज का दारुण दृश्य दिख रहा है| यह दृश्य मानव निर्मित या राज्य निर्मित है| देश के प्रभु वर्ग ने कैटल क्लास को भगवान भरोसे छोड़ दिया हालांकि समाज ने एक सीमा तक साथ दिया ।

ये मजदूर किसी शौकिया हिच हाइकिंग या ट्रेकिंग के नहीं अपने शरीर और प्राणों को जोड़े रखने की कवायद मे लगे है! अभी तक 2 लाख मजदूरों को उत्तरप्रदेश में वापस किया गया है इसमे 10 दिन लगे| 20 लाख मजदूरों की वापसी मे तो 50 दिन लग जायेंगे| अभी बचे पैसे ख़तम हो चले हैं, काम धंधा बंद है, कोरोना का डर अलग से है तो वे अब मरता क्या न करता की मनस्थिति मे चल पड़े हैं| असंगठित क्षेत्र के कितने लोग कहाँ फंसे है इसका अंदाज ही लगाया जा रहा है| इसमे भी केंद्र, राज्य सरकारें राजनीति खेल रही हैं|

सत्ता तंत्र पर राहत के लिये निर्भरता, भारतीय समाज व्यवस्था मे अधिक से अधिक पूरक व्यवस्था हो सकती है| समाधान कारक नहीं| पूज्य श्री विनोबा भावे ने कहा था-असरकारी काम के लिये काम (अ)सरकारी होना चाहिये|

कई जगहों पर मजदूरों, कारीगरों, सीमांत किसानों के साथ घरवापसी के दौर मे ढोरों के समान व्यवहार हुआ|

घर वापसी की जद्दो-जहद मे लगे लाखों मजदूर और स्वरोजगारों का काफिला हमसे सवाल कर रहा है कि क्या 75 वर्ष की भारत की विकास का इतना ही उनके हिस्से पड़ना वाजिब था या वे अधिक के हकदार हैं| वे हाशिये पर कब? कैसे? किन कारणों से पड़ गये या डाल दिये गये है! क्या कोई इन प्रश्नों का उत्तर देगा? या कोई इसके लिये अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करता है? अन्यथा इतनी लंबी-चौड़ी राज्य का उपादेयता किन के लिये रह जाती है? उनकी सुध लेने को सरकार और समाज दोनों को युद्ध स्तर पर इन 45 करोड़ लोगों को प्राथमिकता देनी होगी| भारतीय मजदूर संघ सरीखे समाज के सक्रिय समूहों से संवाद कर साथ लेना होगा| इस क्रम मे सभी को यह ध्यान रखना है कि सभ्य समाज में राज्य व्यवस्था की स्थापना के पीछे प्रस्थापना है कि राज्यवस्था उनके बचाव के लिये सृजित हुई है जो खुद का बचाव न कर सकें| 

सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था को इसी कसौटी पर कसना प. दीनदयाल जी के विचारों की अनुपालना की शुरुआत होगी|

देश बनाता कौन महान

कारीगर, मजदूर, किसान 







Start the Discussion Now...



LIVE अपडेट: देश-दुनिया की ब्रेकिंग न्यूज़