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Sunday May 12, 2024
Aryavart Times

कोरोना के कारण पितृपक्ष में गया में सन्नाटा पसरा : आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई

कोरोना के कारण पितृपक्ष में गया में सन्नाटा पसरा : आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई

पितरों की मुक्ति धाम के रूप में गयाजी को पूरी दुनिया में जाना जाता है. विशेषकर प्रत्येक वर्ष के आश्विन मास में यहां आयोजित होने वाले 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले में देश-विदेश के लाखों लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के निमित्त यहां आते रहे हैं । लेकिन इस साल दो सितंबर से शुरू पितृपक्ष में ‘वष्णुनगरी’ गया में पिंडदानियों नहीं पहुंचने के कारण उदाशी छायी हुई है। इसका गंभीर असर आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ रहा है। 

बीते वर्ष भी आयोजित हुए इस मेले में देश-विदेश से करीब सात लाख लोग यहां आकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड अपने कुल पुरोहितों के निर्देशन में संपन्न किये थे । बीते वर्ष आयोजित पितृपक्ष मेले के पहले दिन से ही विष्णुपद, देवघाट, गदाधर घाट, फल्गु नदी में तीर्थयात्रियों की उमड़ी महती भीड़ के कारण तीर्थयात्रियों को ना केवल पैर रखने में मुश्किलों से गुजरना पड़ रहा था बल्कि कर्मकांड को पूरा करने के लिए जगह के इंतजार में भी घंटों समय बिताना पड़ता था ।

इसके अलावा विष्णुपद मंदिर क्षेत्र का पूरा परिसर यात्रियों से भरा पड़ा था । लेकिन इस वर्ष कोविड-19 के कारण सरकारी व प्रशासनिक स्तर पर पितृपक्ष मेले के आयोजन पर रोक लगने से इन क्षेत्रों में न केवल सन्नाटा पसरा हुआ है बल्कि तीर्थयात्रियों के श्राद्धकर्म व पिंडदान का कर्मकांड कराने वाले पंडा समाज के लोगों की भी चहल कदमी इस वर्ष मेले के आयोजन पर लगे रोक के कारण इन क्षेत्रों में लगभग पूरी तरह से थम सी गयी है । 

पितृपक्ष प्रारंभ होने के एक दिन पहले पुनपुन नदी में तर्पण, पिंडदान कर श्रद्घालु यहां पहुचते हैं और पितृपक्ष प्रारंभ होने के साथ विभिन्न पिंडवेदियों पर पिंडदान करते हैं. इस बार मेले को रद्द करने के बाद प्रशासन तीर्थयात्रियों को गया पहुंचने के लिए मना कर रहा है.

इधर, गया के पंडों ने ऑनलाइन पिंडदान का भी विरोध करते हुए इसका बहिष्कार कर दिया है. तीर्थ और वृत्ति सुधारिणी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल कटियार ने बताया कि मोक्षस्थली गया में पिंडदान ना कभी रुका है और ना कभी रुकेगा.

उन्होंने कहा, श्रद्धा से ही श्राद्ध की उत्पति हुई है. ऑनलाइन पिंडदान की कई संस्थाओं ने व्यवस्था की है, लेकिन हम लोगों ने इसका विरोध किया है.

उन्होंने बताया, “धर्मशास्त्र में कहीं भी ऑनलाइन की व्यवस्था का उल्लेख नहीं है. पिंडदान पुत्रों द्वारा पितृऋण से मुक्ति का मार्ग है, लेकिन जब पुत्र ही उपस्थित नहीं होगा तो फिर यह तो धोखा है.”

इसके अलावा इन क्षेत्रों में एक सौ से अधिक पूजन सामग्रियों, पिंडदान से जुड़े सामानों वह अन्य सामानों के फुटपाथी दुकानें भी लगी थीं. लेकिन इस वर्ष इन क्षेत्रों की स्थायी दुकानों में भी उदासी छायी हुई रही ।







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