34.5c India
Friday May 10, 2024
Aryavart Times

असम में तीन चरणों में होंगे मतदान : समझिए सियासी समीकरण

असम में तीन चरणों में होंगे मतदान : समझिए सियासी समीकरण

असम में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बीच  भाजपा और कांग्रेस नीत गठबंधन के बीच जोर आइमाइश शुरू हो गई है । राज्य में विपक्ष नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी. को मुद्दा बना रही है, वहीं भाजपा विकास कार्यो एवं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को लेकर चुनाव मैदान में है।

असम विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है जिसके मुताबिक, असम में 3 चरणों में चुनाव कराए जाएंगे । पहले चरण में 27 मार्च को मतदान होगा जिसमें 47 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे । दूसरे चरण में 1 अप्रैल को 39 सीटों पर चुनाव होंगे और तीसरे और अंतिम  चरण में 40 सीटों पर 6 अप्रैल को मतदान होगा ।

2016 विधानसभा चुनावों में भाजपा अपने सहयोगी असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ सत्ता में आई थी । तीनों दलों ने असम की 126 सीटों में से 86 सीटों पर जीत दर्ज़ की थी । भाजपा की इस जीत में तब कांग्रेस के बागी रहे हिमंत बिस्व सरमा की भूमिका को अहम माना जाता है । अबकी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) गठबंधन के साथ बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट नहीं है। भाजपा ने बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट की जगह बोडोलैंड की एक और पार्टी यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल के साथ गठबंधन किया है । उधर, विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के साथ ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और वाम दल हैं । हालांकि इनके बीच सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है । 

गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि भाजपा गठबंधन दो-तिहाई बहुमत के साथ असम में अगली सरकार बनाएंगे।

उनका कहना है कि कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए भाजपा के वोटों में कटौती करने के लिए आंदोलनकारी अलग-अलग नामों से जोर आजमाइश कर रहे हैं। उनका उद्देश्य कांग्रेस को जीत दिलाना है।

राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चुनाव में तीन मुख्य चुनौतियां हैं जिनमें सत्ता विरोधी लहर, नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी. प्रमुख है । 

असम में सरकार में होने के कारण भाजपा के समक्ष सत्ता में होने के कारण कुछ वर्गो में स्वभाविक तौर पर उत्पन्न होने वाला असंतोष भी एक मुद्दा है । चुनाव आने पर सत्ता धारी पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना ही पड़ता है । 2016 में बीजेपी के नेतृत्व वाला राजग बहुमत हासिल करने में कामयाब रहा था । तब सर्बानंद सोनोवाल राज्य के मुख्यमंत्री बने थे । भाजना ने पहली बार यहां अपनी सरकार बनाई थी । पांच साल बाद उसे अपना सिंहासन बचाना है ।

जानकार राज्य चुनावों के लिहाज से कहते हैं कि भाजपा जब विपक्ष में होती है तब उसका सामना करना दूसरे दलों के लिये बेहद मुश्किल होता है, लेकिन सत्ता में होने पर बीजेपी सिंहासन बचाने में कमजोर दिखाई देती है ।ऐसे में अगर वाकई में जमीन पर कोई सत्ता विरोधी लहर है तो इससे निपटना बीजेपी के लिए एक चुनौती होगी ।

असम में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 भाजपा के लिए एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकता है । साल 2019 में केंद्र द्वारा शीतकालीन सत्र में पारित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 का असम में काफी विरोध हुआ था. असम का एक बड़ा तबका अभी भी नए नागरिकता अधिनियम का विरोध कर रहा है । सीएए को लेकर बीजेपी असम के लोगों को समझाने की कोशिश कर रही है. लेकिन विपक्षी दलों ने सीएए को एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की है । 

राष्ट्रीय नागरिक पंजी.  भी राज्य में एक अहम मुद्दा है । असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (NRC) प्रक्रिया को पूरा करने में विफल रही है । 2016 चुनावों से पहले और चुनावों के बाद भी भाजपा सरकार लगातार एनआरसी प्रक्रिया को पूरा करने की बात करती रही । भाजपा असम को घुसपैठियों से मुक्त बनाने का वादा किया था लेकिन उसमें सफल नहीं हो पाई है । एनआरसी लागू होने पर पता चला कि राज्य में रह रहे जिन लोगों के पास भारत का नागरिक होने के दस्तावेज नहीं हैं, उनमें से अधिकतर हिंदू हैं ।

वहीं बात विपक्षी दल कांग्रेस की करें तो बीते साल उसे भारी झटका लगा । कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व सीएम तरुण गोगोई ने कोरोनावायरस संक्रमण से उबरने के बाद खराब हुई तबीयत के चलते दुनिया को अलविदा कह दिया । राज्य में कांग्रेस की पहचान रहे गोगोई के निधन से कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है ।

राज्य में कांग्रेस सीएए की विरोधी आवाजों को एकजुट करने पर काफी मेहनत कर रही है, ताकि साल 2016 में खिसका जनाधार उसे वापस मिल सके. गुरुवार को कांग्रेस नेता और असम इकाई के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने दावा किया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के चलते असम संघर्ष और उग्रवाद के दिनों में वापस चला गया है ।

इस महीने की शुरुआत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी असम गए थे तो उन्होंने एक गमछा पहना हुआ था । उस पर सीएए लिखा हुआ था जिस पर काटने का निशान लगाया था । 

इन चुनावों में कांग्रेस को एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन से कुछ लाभ मिलने की संभावना है.  साल 2005 में गठित AIUDFअप्रवासी मूल के मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए बनाई गई. भाजपा अक्सर आरोप लगाती रही है कि एआईयूडीएफ जिन मुस्लिमों की वकालत करती है वो कथित तौर पर बांग्लादेश से अवैध आए घुसपैठिये हैं ।

साल 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को देखें तो राज्य में तो भाजपा ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की और 36.41 फीसदी वोट मिले । वहीं कांग्रेस को 3 सीट पर जीत मिली और उसके हिस्से कुल 35.79 फीसदी वोट आए. एआईयूडीएफ के खाते में 1 लोकसभा सीट आई और उसे 7.87 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस को इस लोकसभा चुनाव में 5.84 फीसदी ज्यादा मिले थे । वहीं एआईयूडीएफ को वोट प्रतिशत में 7 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई थी। दूसरी ओर भाजपा को वोट प्रतिशत में 0.45 फीसदी की कमी आई थी । 







Start the Discussion Now...



LIVE अपडेट: देश-दुनिया की ब्रेकिंग न्यूज़