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Monday April 29, 2024
Aryavart Times

नवोदित लेखकों का जटिल संघर्ष: काटना शमी का वृक्ष पद्मपंखुरी की धार से

नवोदित लेखकों का जटिल संघर्ष: काटना शमी का वृक्ष पद्मपंखुरी की धार से

लेखक-रवि रंजन ठाकुर
कालिदास पर हिंदी जगत में कई उपन्यास लिखे गये हैं।जिनमे जानकी बल्लभ शास्त्री और भगवती शरण मिश्र का नाम अग्रगण्य है।इसी कड़ी में अगला नाम सुरेंद्र वर्मा का है।कालिदास के जीवन पर आधारित उनकी यह रचना 'काटना शमी का वृक्ष पद्म पंखुरी की धार से' अपने शिल्प एवम रचना कौशल में अद्भुत प्रयोग है।हिंदी साहित्य जगत में बहुत कम उपन्यास ऐसे उपलब्ध हैं जो जीवन जगत में व्याप्त जटिलताओं एवं विसंगतियों का यथार्थ रूप में अन्वेषण कर हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं।
सुरेन्द्र वर्मा के इस उपन्यास में हम केवल कालिदास के जीवन से ही अवगत नही होते अपितु नवोदित लेखक के रचनागत संघर्ष को भावनात्मक स्तर पर महसूस करते हैं।यहाँ उपन्यासकार कालिदास के जीवन के माध्यम से संघर्ष, विडंवना,जटिलता, और सकारात्मक सोच के सफल परिणाम को दिखाने का प्रयास किया है।वे कथा संयोजन के द्वारा कालिदास के काल एवम देश से  अवगत कराने की कोशिश करते है जो वर्तमान समय के सापेक्ष दिखाई देता है।
इसका कारण उपन्यास में कालिदास की कथा के साथ न्यूनोक्ति(अंडर स्टेटमेंट)के रूप में आज के संघर्षशील लेखक की कथा को समाहित करना है।कालिदास के सामने पारिवारिक दवाब, विवाह  एवं नौकरी की समस्या,अर्थ का घोर अभाव,उज्जयिनी में रहने सहने की समस्या इसके ऊपर से संपादकों के लटके- झटके इन सबके बीच कला की अभिव्यक्ति के लिए छटपटाता कालिदास का अंतर्मन।तभी कालिदास सोचता है कि इन संपादकों की आदतों से "कोई वाल्मीकि जैसा कवि बने या न बने रत्नाकर जैसा डाकू जरूर बन सकता है।
उपन्यास के प्रारंभ से अंत तक उसका संघर्ष प्रेरणा दायक इसलिए है कि किसी भी परिस्थिति में वह सकारात्मक सोच से विलग नही होता।तभी सफलता का सन्धान कर पाता है।"पांच खंडों में विभक्त इस उपन्यास का कलेवर बृहत्त है लेकिन उपन्यास कही भी उबाऊ नही है।प्रत्येक उच्छवास में लेखक एक दृश्य विधान करता है जो सिनेमाई शिल्प का एक रूप है।इसमें  साहित्य के नव रसों  का समायोजन किया गया है।"खोयी हुई अभिज्ञान मुद्रिका और भैंस का सघोष मल विसर्जन:एक सौन्दर्यबोधिय अध्ययन"ऐसे वाक्यों द्वारा हास्य उतपन्न करने की कोशिश है तो महत्वकांक्षा विसर्जन घाट के प्रसंगों द्वारा आज के संघर्षशील लेखकों की दुर्दशा,हताशा, और विसंगत स्थितियों को उजागर किया गया है।
उपन्यास में मुग्धा और प्रियंगुमंजरी जैसी नायिका है जो स्त्री के अस्मिता को अक्षुण रखे हुए है।इनके प्रत्येक उपन्यास की स्त्री अपनी अस्मिता का नया अध्याय रचती है यहां भी ऐसा देखा जा सकता है।
इस उपन्यास में भावनाओं का मूर्त रूपांतरण दृश्य संयोजन के द्वारा दिखाया गया है।जो उपन्यास कला में नवीन प्रयोग है।समय-समय पर मुनि विकराल का   उपस्थित होना नाटकीय प्रतीत होता है।इस नाटकीयता का प्रयोग मेवाराम जैसे लेखक के ऐतिहासिक उपन्यासों में भी देखा जा सकता है।प्रियंगुमंजरी का प्रचंडबल के संदर्भ में सहवास वर्णन 'मुझे चाँद चाहिए' उपन्यास के सहवास वर्णन जैसा है।कई प्रसंगों में दोनों ही उपन्यास तुलनीय है।
कालिदास के घर से भागने से लेकर नवरत्न बनने तक के सफर में वस्तुतः नवीन लेखकों की संघर्ष गाथा ही समाहित है।कला की अभिव्यक्ति कलाकार के लिए कितना पीड़ादायक होता है इसे यहाँ देखा जा सकता है।"कवि का धर्म  मनुष्य की आत्मा को बचाना नही बचने के योग्य बनाना है।" मार्तण्ड के इस वाक्य एवम संस्कृत के इस विद्वान की गाथा द्वारा कवि का धर्म एवं ओछी राजनीति के शिकार से प्रतिभाशाली के दमन की कथा कही  गयी है।
उपन्यास में काल को उभारने के लिए कालिदास के श्लोक का प्रयोग जगह -जगह किया गया है।भाषा इसकी अलंकारिक तथा तत्सम शब्दावलियों से सुसज्जित है जो कहि- कहि क्लिष्ट हो गई है।'हाल की नेमत' जैसे शब्द का इस वृहत्त उपन्यास में एक ही जगह प्रयोग हुआ है।सम्पूर्ण उपन्यास को नाटक एवम सिनेमाई शिल्प का उपयोग करके लिखा गया है।ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने नाटक के तत्वों के आधार पर ही इस औपन्यासिक कृति को तैयार किया गया है।
प्रत्येक उच्छवास सिनेमा के पटकथा शैली में लिखा गया है। उपन्यास का नामकरण कालिदास के एक श्लोक का हिंदी रूपांतरण के आधार पर किया गया है।"इस दुनिया मे सुख की प्राप्ति अर्थात काटना शमी वृक्ष पद्म पंखुरी की धार से।"इतना अवश्य है कि इस पुस्तक को पढ़कर कालिदास के समय,परीस्थिति,देश एवं विषम संकट की स्थिति में अपने आंतरिक शक्ति को संजोते हुए कला की अविव्यक्ती के लिए छटपटाते कलाकार की स्थितियों को समझा जा सकता है।हिंदी जगत में यह उपन्यास अनूठा कहा जा सकता है।







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