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Friday May 10, 2024
Aryavart Times

भारत का प्रभावशाली पक्ष दुनिया में रखने के लिये बौद्धिक क्षत्रिय की जरूरत : मोहन �

भारत का प्रभावशाली पक्ष दुनिया में रखने के लिये बौद्धिक क्षत्रिय की जरूरत : मोहन �

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने सत्य और ज्ञान आधारित विश्व बनाने के भारत के प्रयासों में ‘बौद्धिक गुलामी’ को मुख्य अवरोध बताते हुए रविवार को कहा कि ऐसी स्थिति में दुनिया में अपना पक्ष प्रभावशाली ढंग से रखने के लिये देश को ‘बौद्धिक क्षत्रिय’ की जरूरत है। सरसंघचालक ने महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘ हिन्दुत्व सत्य के सतत अनुसंधान का नाम है, ये काम करते-करते आज हिन्दू समाज थक गया है, सो गया है, परन्तु जब जागेगा, तब पहले से अधिक ऊर्जा लेकर जागेगा और सारी दुनिया को प्रकाशित कर देगा। ’’ 

‘ऐतिहासिक कालगणना: एक भारतीय विवेचन’ पुस्तक का विमोचन करते हुए भागवत ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व पर प्रभुत्व स्थापित करने को इच्छुक शक्तियां कमजोर देशों को अपने तरीके से प्रभावित करना चाहती हैं, कई देशों में लोगों को अपने तरीके से जीने की छूट नहीं है। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों को भारत ही एकमात्र ऐसा देश दिखता है, जहां उन्हें आश्वस्ति मिलती है । 

उन्होंने कहा कि सत्य और ज्ञान आधारित विश्व बनाने के लिये संघर्ष अभी जारी है और इसमें मुख्य अवरोध ‘बौद्धिक गुलामी’ है । 

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘ ऐसे में हमें बौद्धिक क्षत्रिय चाहिए। इसका मतलब संघ के बौद्धिक क्षत्रिय नहीं, बल्कि भारत के बौद्धिक क्षत्रिय चाहिए। भारत का पक्ष प्रभावशाली ढंग से लेकर दुनिया में चलने वाले बौद्धिक क्षत्रिय चाहिए।’’  

भागवत ने कहा, "पहले आक्रामक शक्तियां सम्पत्ति के लिए भारत आईं. शक हूण कुषाण आए. लेकिन वो सभी हमारे भीतर समाहित हो गए’’ ।

उन्होंने कहा कि बाद में इस्लाम अलग स्वरूप में आया. उसका भाव यही था कि जो हमारे जैसा है वही रहेगा और जो हमारे जैसे नहीं है उसे रहने का अधिकार नहीं. इसके लिए हमारे सांस्कृतिक प्रतीक तोड़े गए ।

सरसंघचालक ने कह कि हमारी श्रद्धाओं का निकन्दन किया, लंबे समय तक लड़ाई चली, मगर लड़ाई भी एक संबंध का कारण होता ही है । नतीजा यह हुआ कि आक्रांता भी भारतीय सांस्कृतिक परम्परा से प्रभावित होने लगे. समरसता आने की प्रक्रिया शुरू हुई ।

उन्होंने कहा, "आज भारत में विदेशी कोई नहीं. भारत में सभी हिन्दू पूर्वजों के ही वंशज हैं. कोई हमको बदल देगा ऐसा भय नहीं है. बस डर यही है कि कहीं हम भूल न जाएं । ’’







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