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Monday April 29, 2024
Aryavart Times

मृणाल सेन की विरासत की यादें यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के पुस्तकालय को...

मृणाल सेन की विरासत की यादें यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के पुस्तकालय को...

जो फिल्मप्रेमी बांग्ला सिनेमा को जानते समझते होंगे, वे मृणाल सेन को जानते होंगे या उनका नाम तो सुना ही होगा। उन्होंने बंगाल में फिल्म कला को आकार देने में बहुत योगदान दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, उनके सुपुत्र कुणाल सेन ने अपने पिता के लिखे कुछ बेशकीमती खत, उनके कुछ स्क्रीनप्ले, कुछ पटकथाएं और न जाने कितनी तस्वीरें यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के पुस्तकालय को सौंप दी हैं। 

मीडिया, कला सहित विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को लगता है कि इससे उनका व्यक्तिगत नुकसान हो गया। उन्हें लगता है कि भले ही इनमें से एक भी दस्तावेज या तस्वीर को निहारने का अवसर उन्हें फिलहाल नहीं मिलता, लेकिन कुछ बहुमूल्य सा हाथ से चला गया, ऐसी अनुभूति हुई। 

दिवंगत मृणाल सेन के साहबजादे अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में सेवारत हैं, इससे साफ है कि उनकी शायद सिनेमा के कलाशास्त्र में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही होगी। उन्होंने तर्क दिया है कि मृणाल सेन या तो नोस्टेलजिया के गहन विरोधी थे या आलसी थे, इसलिए खुद भी अपनी चीजें बेतरतीबी से रखते थे। 

कुणाल ने यह दलील भी दी कि उन्हें भरोसा नहीं था कि अगले कुछ सौ बरस इन स्मृति प्रतीकों का कोई महत्व रहता भी या नहीं और उन्हें कोलकाता में इन्हें रखने के लिए कोई संग्रहालय नजर नहीं आया। इसके अलावा 60 साल से ज्यादा उम्र के कुणाल को खुद की बढ़ती उम्र भी इन चीजों को संरक्षित रखने में अवरोधक नजर आई।

एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि गजब ही हुआ कि बांग्ला सिनेमा, हिंदी सिनेमा के किसी कर्णधार को इसकी भनक तक नहीं थी कि मृणाल सेन की सिनेमाई समझ को समझने वाला कुछ साहित्य सहेजा जा सकता है। कहीं तो लोग चाहें और उन्हें परिवार ऐसी चीजें देने से सकुचाते हैं और कहीं परिवार को कोई नजर नहीं आया तो शिकागो के विश्वविद्यालय को सबकुछ सौंप दिया।

कुणाल ने सही किया या गलत, इस पर टिप्पणी तो बेमानी है। लेकिन बोलती तस्वीरों के जादू, उसकी कला और मर्म को समझाने वाली रुकी हुई तस्वीरें, कुछ खत, कुछ पटकथाएं, कुछ पांडुलिपियां अगर हिंदुस्तान में ही रहतीं, या बंगाल में ही रहतीं तो सुकून सा मिलता। कई लोग सिनेमा गुनते, सीखते, पढ़ते और समझते।

उनका हालांकि मानना है कि इन सियासी दलों को भी भनक नहीं लगी होगी नहीं तो बंगाल में चुनाव के नाम पर अनजाने में यह भला काम करने की उनमें होड़ लग जाती।







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