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Monday April 29, 2024
Aryavart Times

फिल्म अनोखी रात : विसंगतियों का आईना

फिल्म अनोखी रात : विसंगतियों का आईना

लेखक रवि रंजन ठाकुर

भारतीय सिनेमा स्त्री से संबंधित पहलुओं को समय- समय पर उजागर करता रहा है।अपने शुरआत से ही भारतीय सिनेमा ने स्त्री जीवन की विसंगत स्थितियों को कैमरे द्वारा आख्ययित करता रहा है।हिंदी में महिला प्रधान अनेक सिनेमा हैं। इनमें स्त्री अपने विसंगत स्थितियों से जूझती दिखाई देती है।इनके माध्यम से कहानीकार का उद्देश्य समाज को आइना दिखाना होता है।इसी संदर्भ में 'अनोखी रात' फ़िल्म को देखा समझ जा सकता है।
वर्तमान समय मे भी इस फ़िल्म की प्रासंगिकता उतनी ही बनी हुई है जितनी तब थी। इसमे स्त्री के अस्मिता संबंधी प्रश्नों को उठाया गया है।स्त्री अपनी दुर्बलता में यहाँ जूझती दिखाई देती है वह घुटने नहीं टेकती संघर्ष करती है।यहाँ स्त्री जीवन के कई पहलुओं को,जो पुरुषवर्चस्ववादी व्यवस्था से दमित है,दिखाने का प्रयास  किया गया है।

कर्ण प्रिये संगीत के साथ यह फ़िल्म अनेको प्रश्नों को उस दौर में उठाते हुए नज़र आता है।मसलन विवाह की प्रासंगिकता, अनमेल विवाह की मजबूरी,स्त्री शोषण, वैवाहिक विसंगतियां ,स्त्री द्वारा स्वयं को महत्व देने की कोशिश इत्यादि।जिस उदात्त वृति को फ़िल्म विभिन्न पात्रों के माध्यम से व्यख्यायित करता है वह उस दौर की ही नही आज की भी मांग है।पूँजी ने इंसान को कितना निर्मम बनाया है उसे भी यहाँ बताने की कोशिश की गई है।एक कलाकार का संवेदनात्मक स्तर हर परिस्थिति से संवेदित होता है इसे यहां समझा जा सकता है।

निर्देशक के पास उर्वर दृष्टिबोध था जिसे इसमें एक रात के आख्यान के माध्यम से  समेटने की कोशिश की गई है।फ़िल्म में नाटकीयता का समावेश अवश्य है जो तत्कालीन फ़िल्म लेखन के रचनात्मक विशेषता से प्रेरित है।
'महलों का राजा मिला ....' गीत मनु स्मृति एवं पराशर स्मृति में वर्णित स्त्री संबंधी विचारों से अवगत कराता है।इस गीत में जो व्यंग्य ध्वनित होता है वह  स्त्री विषयक पितृसत्तात्मक सोच पर प्रहार है।गोस्वामी जी ने भी लिखा है कि 'पुत्री पवित्र करहु कुल दोउ'।मिले न फूल तो ....गाने में जो भाव है वह व्यक्ति पक्ष को उजागर करने वाला है।
दुल्हन से तुम्हारा मिलन होगा...गाने में युवा मन के उच्छवास को प्रस्तुत किया गया है।पूरी फिल्म स्त्री को केंद्र में रखकर अपनी बात प्रस्तुत करती है।इसमें स्त्री के अस्मिता संबंधी मुद्दे को पहचान कराने का प्रयास दिखाई देता है। बंगला लेखक प्रदीप भाटाचार्य का मानना है कि एक स्त्री को उतना ही हँसना चाहिए जितना कि वह रोना संभाल सके।पुरुष वर्चस्ववादी समाज मे स्त्री के हिस्से रोना ही अधिक आता है और हँसना काम। फ़िल्म का मर्म इस तथ्य से अवगत करा देता है।पुरुषवर्चस्ववादी समाज अपनी व्यवस्था से पुरुष को भी प्रताड़ित कर इंसान से हैवान बना देता है। इस पक्ष को भी यहाँ चित्रित किया गया है।

प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली,लज्जा,डर्टी पिक्चर,डेंजरस इश्कऔर अनार कली ऑफ आरा फ़िल्म पुरुषवर्चस्ववादी व्यवस्था में पिसती स्त्री के विसंगत स्थितियों को व्यख्यायित करने मे सक्षम है।इन सभी फिल्मो में स्त्री के ईर्द-गिर्द घिरे पुरुष वर्चस्ववादी संजाल का चित्रण देखा जा सकता है।ऐसी फिल्में हिट फ्लॉप से आगे बढ़कर कथा पहलुओं को लेकर काल से संवाद करने की क्षमता रखती हैं। स्त्री जब अस्मिता के विंदु पर स्वयं को महत्व देती है तब वह अपने अस्तित्व से समाज को अवगत करती है।इन सभी फिल्मो में इसका चित्रण दिखाई देता है।इतना अवश्य कहा जा सकता है कि 'अनोखी रात' फ़िल्म अपने नाम के अनुरूप अपनी कहानी को स्पष्ट करते हुए दर्शकों को समाज और व्यक्ति के कई पहलुओं पर सोचने को विवश करती है।







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